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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : १८१
समाधान :- ३ राजू दूरी पर जब ऊँचाई ७ राजू है, तब दो राजू दूरी पर कितनी ऊँचाई प्राप्त होगी ? इस त्रैराशिक नियमसे जानी जाती है । यथा
राज्
इस्तू अन्जू सं
त्रिकोण एवं लम्बे बाहु युक्त क्षेत्रके घनफल निकालने की विधि एवं उसका प्रमाण
भुज- पडिभुज - मिलिद्ध विदफलं वासमुदय-वेद-हवं । 'एक्काययत्त-बाहू वासद्ध-हवा य वेव-हदा ॥ १८१॥
अर्थ :- [१] भुजा और प्रतिभुजाको मिलाकर प्राधा करनेपर जो व्यास हो, उसे ऊँचाई और मोटाईसे गुणा करना चाहिए। ऐसा करनेसे त्रिकोण क्षेत्रका घनफल निकल प्राता है ।
[२] एक लम्बे बाहुको व्यासके आधे से गुणाकर पुन: मोटाईसे गुणा करनेपर एक लम्बे बाहु-युक्त क्षेत्रके घनफलका प्रमाण आता है ।। १८१ ॥
विशेषार्थ : - गा० १८० के विशेषार्थ लम्बी रेखाका नाम भुजा और ॐ राज लम्बी रेखा (*+ *} == ॐ५ राजू है । इसको आधा करने पर ( और मोटाई का गुणा कर देने पर (३ x) = चतुर्भुजका घनफल है ।
चित्रण में "स" नामक विषम चतुर्भुजमें ७ राजू का नाम प्रतिभुजा है । इन दोनोंका जोड़ ३ ) - राजू प्राप्त होते हैं। इनमें ऊंचाई अर्थात् ४० घन राजू "रा" नामक विषम
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इसीप्रकार "ब" चतुर्भुजका घनफल भी प्राप्त होगा । यथा : राजू भुजा + राजू प्रतिभुजा = राजू । तत्पश्चात् घनफल = x ३ + = ३१ अर्थात् २४१ घनराजू "ब' नामक विषम चतुर्भुजका घनफल प्राप्त होता है । यही धनफल गाया १८२ में दर्शाया गया है ।
१. द. एक्कायजत्त, ज. क. ठ. एक्कायसत्त ।