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गाथा : १७८-१७६ ] पढमो महाहियारो
[ ४६ अर्थ : विवक्षित स्थानमें अपनी-अपनी ऊँचाईसे उस वृद्धि और क्षयके प्रमाणको [ 1 ] गुणा करके जो गुणनफल प्राप्त हो, उसको भूमि के प्रमारगमेंसे घटानेपर अथवा मुखके प्रमाणमें जोड़ देनेपर ध्यामका प्रमाण निकलता है ।। १७७।।
_ विशेषार्थ :- कल्पना कीजिये कि यदि हमें भूमिको अपेक्षा चतुर्थ स्थानके व्यासका प्रमाण निकालना है तो हानिका प्रमाण जो छह बटे सात [ | है, उसे उक्त स्थानकी ऊँचाई | ३ रा० । से गुरणाकर प्राप्त हुए गुणनफलको भूमिके प्रमाणमेंसे घटा देना चाहिए । इस विधिसे चतुर्थ स्थानका व्यास निकल पाएगा। इसीप्रकार मुखकी अपेक्षा चतुर्थ स्थानके व्याराको निकालनेके लिए वृद्धिके प्रमाण [2 ] को उक्त स्थानकी ऊँचाई ( ४ राजू ) से गुणा करके प्राप्त हुए गुणनफलको मुख में जोड़ देनेपर विवक्षित स्थानके व्यास का प्रमाण निकल पाएगा।
उदाहरणा-.x३-30: । - ....'' मूस्लिी प्रार्थ प्रयानका व्यास । १४४=१४; १४+मुखर- मुखको अक्षा चतुर्थस्थानका व्यास । अधोलोकगत सातक्षेत्रोंका धनफल निकालने हेतु गुणकार एवं प्राकृति
'उणवरण-भजिद-सेढी अट्ठ सु ठाणेसु ठाविदूरण कमे । 'वास?' 'गुणप्रारा सत्तादि-छक्क वढि-गदा ॥१७॥ १७ । ४.१३ । १६ 1 १४२५ । ४४३१ । ३४३७ १ ४१४३ | ४ |
सत्त-घण-हरिद-लोयं सत्तेसु ठाणेसु ठाविद्रूण कमे। विदफले गुणयारा दस-पभवा छक्क-बढ़ि-गदा ॥१७॥
३४३ १० १६६३ १६ |३३३ २२ ६३३ २८ १३६६ ३४ | ३६३.४० १३३३ ४६ |
अर्थ :-- श्रेणी में उनचासका भाग देनेपर जो लब्ध प्रावे उसे क्रमशः पाठ जगह रखकर व्यासके निमित्त गुणा करनेके लिए प्रादिमें गुणकार सात हैं । पुनः इसके आगे क्रमश: छह-छह मुणकारको वृद्धि होती गई है ।।१७।।
श्रेणीप्रमारण राजु ७; यहाँ ऊपर से नीचे तक प्राप्त पृथिवियोंके व्यास क्रमशः ४७; x१३: ४१६; २५; ४३१; x ३७; x ४३, x ४६ ।।१७।।
-- १.ब. उगवणज्जिद । २. द. ज. क.. ठाण। ३. द. वासद्ध, म. वासत्तं । ४. ब.
वासद्ध मुरगणाए।