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५० ] तिलोयाण्णत्ती
[ गाथा : १७६ अर्थ:-सातके घन अर्थात् तीनसौ तयालीससे भाजित लोकको क्रमशः सात स्थानोंपर रखकर अधोलोकके सात क्षेत्रों से प्रत्येक क्षेत्रके घनफलको निकालने के लिए प्रादिमें मुणकार दस और फिर इसके प्रागे क्रमश: छह-छहकी वृद्धि होती गई है ।।१७६।।
लोकका प्रमाण ३४३, ३४३ (७) = १; तथा उपर्युक्त सात पृथिवियोंके घनफल क्रमशः १४ १०; १४ १६; १४२२; १४ २८; १४ ३४; १४४० और १४४६ धन राजू प्राप्त होंगे ॥१७॥
विशेषार्थ :-( दोनों गाथाओंका ) अधोलोकमें सात पृथ्वियाँ हैं और एक भूमि क्षेत्र, लोककी अन्तिम सीमाका है, इसप्रकार पाठों स्थानोंका व्यास प्राप्त करने के लिए श्रेणी ( ७) में ४६ का भाग देकर अर्थात् को क्रमश: ७, (७+ ६ )= १३, ( १३ + ६ ) = १६, ( १६+६)- २५, (२५+६) =३१, (३१+६)=३७, (३७+६)=४३ और (४३+६)=४६ से गुणित करना चाहिए।
उपर्युक्त आट व्यासोंके मध्य में ७ क्षेत्र प्राप्त होते हैं। इन क्षेत्रोंका घनफल निकालनेके लिए ३४३ से भाजित लोक अर्थात् ( 3 )=१ को सात स्थानोंपर स्थापित कर क्रमश: १०, १६, २२, २८, ३४, ४० और ४६ से गुणा करना चाहिए यथा
पृश्चियोंके घनफल :
१४१०५ १०धन रन --~- - '१५१६ = १६ धनरात-----
१४७० ९एन गौड़ाई ------- , "
१४२२६२२ ""
६४२४-२८- -
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४३-3804
५.३४, " ext- " -- - ५३ ॥ "
३.६ " " -- - ७ एन चौड़ाई
९४४०-Fon"-
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x४६%3D४६
धनराज