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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : १७५-१७७ अधोलोकके मुख एवम् भूमिका विस्तार तथा ऊँचाई सेढीए सत्त-भागो हेछिम-लोयस्स होदि मुह-वासो । भू-वित्थारो सेढी सेडि ति य 'तस्स उच्छहो ।।१७।
। । -।अर्थ :-अधोलोकका मुख व्यास श्रेणीके सातवें भाग अर्थात् एक राजू और भूमि विस्तार जगच्छणी प्रमाण ( ७ राजू ) है, तथा उसकी ऊंचाई भी जगच्छुणी प्रमाण ही है ।।१७।।
विशेषार्थ : अधोलोकका मुख-व्यास एक राजू , भूमि सात राजू और ऊँचाई सात राजू प्रमारण है।
प्रत्येक पृथिवीके चय निकालने का विधान भूमीन मुहं सोहिय उच्छेह-हिदं मुहाउ भूमीदो। सव्वेसु खेत्तेसु पत्तेकं बड्ढि-हाणीयो ।।१७६।।
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. अर्थ :-भूमिके प्रमाणमेंसे मुखका प्रमाण घटाकर शेषमें ऊँचाईके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध पावे, उतना सब भूमियोंमें से प्रत्येक पृथिवी क्षेत्रकी, मुखकी अपेक्षा वृद्धि और भूमिकी अपेक्षा हानिका प्रमाण निकलता है ।।१७६॥
विशेषार्थ :-आदि प्रमाणका नाम भूमि, अन्तप्रमाणका नाम मुख तथा क्रमसे घटनेका नाम हानिचय और क्रमसे वृद्धिका नाम वृद्धिचय है।
मुख और भूमिमें जिसका प्रमाण अधिक हो उसमेंसे हीन प्रमाणको घटाकर ऊँचाईका भाग देनेसे भूमि और मुखकी हानिवृद्धिका चय प्राप्त होता है । यथा--भूमि ७ – १ मुख-६७ ऊँचाई वृद्धि और हानिके चयका प्रमाण हुआ।
प्रत्येक पृथिवीके व्यासका प्रमाण निकालनेका विधान तक्खय-बढि-पमाणं णिय-णिय-उदया-हवं जइच्छाए । हीणभहिए संते वासारिण हवंति भू-मुहाहितो ।।१७७।।
१. द. क, ज.ठ. सत्त ।
२. द. ब. ससे।
३.६. ब, १
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