________________
गाया : १५१-१५२ 1 पढमो महाहियारो
[ ३६ अर्थ :-सम्पूर्ण लोककी ऊँचाई चौदह राजू प्रमाण होती है । अर्धमृदंगकी ऊँचाई, सम्पूर्ण मृदंगकी ऊंचाईके सदृश है अर्थात् अर्थमृदंग सदृश अधोलोक जैसे सात राजू ऊँचा है, उसीप्रकार पूर्ण मृदंगके सदृश ऊर्बलोकभी सात राजू ऊँचा है ।।१५।।
तीनों लोकोंकी पृथक्-पृथक् ऊँचाई हेद्विम-मज्झिम-उरिम-लोउच्छेहो कमेण रज्जवो । सत्त य जोयरण-लक्खं जोयण-लक्खूरण-सग-रज्जू ॥१५॥
। ७ । जो. १००००० १७ रिण जो. १००००० । अर्थ :- क्रमश: अधः कोककी ऊँचाई लात मधु मध्यलोकको अचाई एक लाख योजन और ऊर्बलोककी ऊँचाई एक लाख योजन कम सात राजू है ॥१५१॥
विशेषार्थ :-अधोलोककी ऊँचाई सात राजू, मध्यलोककी ऊँचाई एक लाख योजन और ऊर्ध्व लोककी ऊँचाई एक लाख योजन कम सान राजू प्रमाण है।
अधोलोकमें स्थित पृथिवियों के नाम एवं उनका अवस्थान
इह रयण-सक्करा-वालु-पंक-धूम-तम-महातमादि-पहा । मुरवद्धम्मि महीनो सत्तच्चिय रज्जु-अंतरिदा' ॥१५२॥
अर्थ :- इन तीनों लोकोंमें से अर्धमृदंगाकार अधोलोक्रमें रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा, ये सात पृथिवियाँ एक-एक राजूके अन्तरालसे हैं ।।१५२॥
विशेषार्थ :-ऊपर प्रत्येक पृथिवीके मध्यका अन्तर जो एक राजू कहा है, वह सामान्य कथन है । विशेष रूपसे विचार करनेपर पहली और दूसरी पृथिवीकी मोटाई एक राजमें शामिल है, अतएव इन दोनों पृथिवियोंका अन्तर दो लाख बारह हजार योजन कम एक राजू होगा। इसीप्रकार प्रागे भी पृथिवियोंकी मोटाई, प्रत्येक राजूमें शामिल है, अतएव मोटाईका जहाँ जितना प्रमाण है उतना-उतना कम, एक-एक राजू अन्तर वहाँका जानना चाहिए ।
१. क. ज. 2. अंतग्यिा ।