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तिलोयपणरणत्ती
[ गाथा : १५०
तात्पर्य यह है कि लोककी मोटाई सर्वत्र सात राजू है और विस्तार क्रमशः अधोलोकके नीचे सात, मध्यलोकमें एक, ब्रह्मस्वर्गपर पांच और लोकके अन्तमें एक राजू है ।।१४६।।
विशेषार्थ :----लोक्रकी उत्तर-दक्षिण मोटाई, पूर्व-पश्चिम चौड़ाई और गा० १५० के प्रथम चरणमें कही जानेवाली ऊँचाई निम्नप्रकार है
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अधोलोक एवं ऊर्ध्वलोककी ऊंचाईमें सदृशता चोद्दस-रज्जु-पमाणो उच्छेहो होदि सयल-लोयस्स । अद्ध-मुरज्जस्सुदवो 'समग्ग-मुरवोदय-सरिच्छो ।।१५०।।
१४ । - |-।
१.व.मामग्ग ।