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गाथा : १४८ - १४६ :
महाहवारी
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करते जब सातों ही परतें प्रतराकार में एक दूसरेपर स्थापित हो जाएँगी तब ७ इंच उत्सेध, ७ इंच विस्तार और सात इंच बाहुल्यवाला एक क्षेत्र प्राप्त होगा । यह मात्र दृष्टान्त है किन्तु इसका दाष्टन्ति भी प्रायः ऐसा ही है । यथा - १४ राजू ऊँचे, ७, १, ५, १ राजू चौड़े और ७ राजू मोटे लोककी एक-एक प्रदेश मोटाई वाली एक-एक परत छीलकर तथा उसे प्रतराकार रूपसे स्थापित करने अर्थात् बायको बाहुल्यसे मिला देनेपर लोकरूप क्षेत्रकी मोटाई ७ राजू, उत्सेध ७ राजू और विस्तार ७ राजू प्राप्त होता है । यथा
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नोट :- मूल गाथा १३८ के पश्चात् दी हुई संदृष्टिका प्रयोजन विशेषार्थसे स्पष्ट होजाता है ।
त्रिलोककी ऊँचाई, चौड़ाई और मोटाईके वर्णनकी प्रतिज्ञा
एदेण पयारेणं रिप्पण्णत्त-लोयखत्त- दीहत्तं ।
वास- उदयं भलामो निस्संदं दिट्टिवादादो ।। १४८ ।।
अर्थ : इस प्रकार से सिद्ध हुए त्रिलोकरूप क्षेत्रकी मोटाई, चौड़ाई और ऊँचाईका हम
( यतिवृषभ ) वैसा ही वर्णन कर रहे हैं जैसा दृष्टिवाद अंगसे निकला है ।। १४८ ।।
दक्षिण-उत्तर सहित लोकका प्रमाण एवं प्राकृति
सेढि पमाणायामं भागेसु दक्खिणुत्तरेस पुढं ।
वारेसु वासं भूमि मुहे सत्त एकक-पंचेवका ॥ १४६ ॥
- । - १७१ । ७५ । ७१ ।
प्रथं : – दक्षिण और उत्तर भाग में लोकका आयाम जगच्छ ेणी प्रमाण अर्थात् सात राजू
है, पूर्व और पश्चिम भागमें भूमि तथा मुखका व्यास, क्रमशः सात, एक, पांच और एक राजू है ।