________________
निबोयपण्यात्ती
[ गाथा : १४० विशेषार्थ : सम्पूर्ण लोकमेंसे अधोलोकको इसप्रकार अलग किया गया है कि जिसका मुख एक राजू और भूमि मात राजू है । यथा
सम्पूर्ण लोकको वर्गाकार प्राकृतिमें लानेका विधान एवं प्राकृति
दोपक्ख-खेत्त-भेत्तं' उच्चलयंतं पुण-द्ववेदणं ।
विवरीदेणं मेलिदे वासुच्छेहा सत्त रज्जूभो ।।१४०।।
अर्थ :-दोनों पोर फैले हुए क्षेत्रको उठाकर अलग रखदें, फिर विपरीतक्रमसे मिलाने पर विस्तार और उत्सेध सात-सात राजू होता है ।।१४०।।
विशेषार्थ :-लोक चौदह राजू ऊँचा है । इस ऊँचाईको ठीक बीचमेंसे काट देनेपर लोकके सामान्यत: दो भाग हो जाते हैं, इन क्षेत्रों मेंसे अधोलोकको अलगकर उसके दोनों भागोंको और अलग किये हुए ऊर्ध्वलोकके चारों भागोंको विपरीत क्रमसे रखनेपर लोकका उत्सेध और विस्तार दोनों सात-सात राजू प्राप्त होते हैं । यथा :
१. द. क. ज.ठ. उचल्लयतं ।