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तिलोग्रपण्यानी
[ गाथा : ११८-१२० । उणवीस-जोयणेसु चउवीसेहिं तहावहरिदेसु । तिविह-वियप्पे पल्ले घण-खेत्त'-फला हु 'पत्तेपं ॥११८॥
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अर्थ : समान गोल (बेलनाकार) क्षेत्रके व्यासके बर्गको दससे गुणा करके जो गुणनफल प्राप्त हो उसका वर्गमूल निकालने पर परिधिका प्रमाण निकलता है, तथा विस्तार अर्थात् व्यासके | चौथे भागसे अर्थात् अर्द्ध ध्यासके वर्गसे परिधिको गुरिणत करनेपर उसका क्षेत्रफल निकलता है । तथा उन्नीस योजनोंको चौबीससे विभक्त करने पर तीन प्रकारके पल्योंमेंसे प्रत्येकका धन-क्षेत्रफल होता है ।।११७-११८॥
उदाहरण—एक योजन व्यासवाले गोलक्षेत्रका घनफल :१४१ x १०- १०/ १०८ परिधि; 'x-१ क्षेत्रफल x १-घनफल।
विशेषार्थ :--यहाँ समान गोलक्षेत्र ( कुण्ड) का व्यास १ योजन है, इसका वर्ग (१यो०४१यो०)=१ वर्ग यो० हुआ । इसमें १० का गुणा करनेसे ( १वर्ग यो० ४१०= ) १० वर्ग योजन हए । इन १० वर्ग यो का वर्गमूल ३३ (१) योजन हुआ, यही परिधिका (सूक्ष्म) प्रमारण है।
यो परिधिको व्यासके त्राथाई भाग ३ यो० से गुणा करने पर (*xd=13 वर्ग यो० (सूक्ष्म) क्षेत्रफल हुया । इस ३१ वर्ग यो० क्षेत्रफलको १ यो० महराईसे गुणित करनेपर (३२- १ यो०-- धन यो० ( सूक्ष्म ) घनफल प्राप्त होता है 1५११७-११८।। व्यवहार पल्यके रोमोंकी संख्या निकालनेका विधान तथा उनका प्रमाण
उत्तम-भोग-खिदोए उप्पण्ण-विजुगल-रोम-कोडीयो। एक्कादि-सत्त-दिवसावहिम्मि च्छेत्तूण संगहियं ॥११॥ प्राइवहि तेहि रोमम्गेहि गिरन्तरं पढमं ।
प्रचंतं राचिदूणं भरियन्वं जाय भूमिसमं ॥१२०॥ अर्थ :-उत्तम भोग-भूमिमें एकदिनसे लेकर सात दिनतकके उत्पन्न हुए मेले के करोड़ों रोमोंके अविभागी-खण्ड करके उन खण्डित रोमानोंसे लगातार उस एक योजन विस्तार वाले प्रथम पल्य (गड्ढे) को पृथ्वीके बराबर अत्यन्त सधन भरना चाहिए ।।११६-१२०11
१. [ घणखेत्तफ 1. २. ब, पतंका।