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गाथा : १२१-१२२ ] पढमो महाहियारो
[ २७ दंड-पमाणंगुलए उस्सेहंगुल जवं च जूवं च । लिक्खं तह काणं वालग्गं कम्म-भूमीए ॥१२१॥ 'प्रवर-मज्झिम-उत्तम-भोग-खिवीणं च वाल-अग्गाई। 'एक्केक्कमट्ठ - घण - हब - रोमा ववहार-पल्लस्स ।।१२२॥ 5० । ६६ । ५००।८।८।८।८ । ८ । ८ । ८।८ । 50 । ६६ । ५००।८।८ । ८।८।८ । E1८।८ | 50 । ६६ । ५०० । ८ । ।८1८।८।८।८।८।
पल्ल रोमस्स अर्थ :-ऊपर जो ३१ प्रमाण घनफल पाया है, उसके दण्ड कर प्रमाणांगुल कर लेना चाहिए। पुनः प्रमाणांगुलोंके उत्सेधांगुल करना चाहिए । पुनः जो, जू, लोख, कर्मभूमिके बालाग्न, मध्यमभोगभूमिके बालाग्न, उत्तम भोगभूमिके बालाग्र, इनकी अपेक्षा प्रत्येक को पाठके धनसे गुणा करनेपर व्यवहार पल्यके रोमोंकी संख्या निकल जाती है ।।१२१-१२२।। यथा
४४४४४४४२००० ४२०००४ २००० x ४ x ४ x x x २४ x २४ x २४ x ५०० x ५०० x ५००xxxxcxcxcxcxcxcxcxcxcxcxcxcxcxcx xcx Ex-४१३४५२६३०३०८२०३१७७७४६५१२१६२०००००००००००००००००० ।
नोट :- मूल संदृष्टिके 50 का अर्थ ३ शून्य (०००) है। मूलमें तीन बार ९६, तीन बार ५०० और चौबीस बार ८ के अंक पाए हैं । हिन्दी अर्थमें तीन बार ५०० और इक्कीस बार ८ के अंक रखे गये हैं, तीन बार ६६, तीन बार ८ और ९ शून्य अवशेष रहे । ६६००० को ८ से गुणित करने पर (६६०००४८)=७६८००० अंगुल प्राप्त होते हैं, जो एक योजनके बराबर हैं। इन अंगुलोंके कोस आदि बनानेपर ४ कोस, २००० धनुष, ४ हाथ और २४ अंगुल होते हैं । अर्थमें तीन बार ४, तीन बार २०००, तीन बार ४ और तीन बार २४ इसीके सूचक रखे गये हैं।
विशेषार्थ :-एक योजनके चार कोस, एक कोसके २००० धनुष, एक धनुषके चार हाथ और एक हाथके २४ अंगुल होते हैं । एक योजन व्यास वाले गड्ढेका घनफलप्रमाण घन योजन प्राप्त हुआ है, एक प्रमारण योजनके ५०० व्यवहार योजन होते हैं । "घन राशिका गुणकार या भागहार घनात्मक ही होता है" इस नियमके अनुसार को तीन बार ५०० से गुणा किया और इन व्यवहार योजनोंके रोम खण्ड बनाने हेतु तीन-तीन बार ४ कोस, २००० धनुष, ४ हाथ, २४ अंगुल एवं पाठ-पाठ यव, प्रादिके प्रमाणसे गुणा किया गया है।
१. ब, प्रवरमझिम । २. द. एस्किक्क । ३. [पल्लं] ।