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गाथा : ११२-११७ ] पढमो महायिारों
[ २५ प्रात्मांगुलसे मापने योग्य पदार्थ भिगार-कलस-दप्पण-वेणु-पडह-जुगाण सयण-सगदाणं' । हल-मसल-सत्ति-तोमर-सिंहासरण-वाण-रणालि-अक्खाणं ॥११२॥ चामर-दुःदुहि-पीढच्छताणं णर-णिवास-णयराणं ।
उज्जाण-पहुदियाणं संखा प्रादंगुलेणेव ॥११३।। अर्थ :-झारी, कलश, दर्पण, वेणु, भेरी, युग, शय्या, शकट ( गाड़ी ), हल, मूसल, शक्ति, तोमर, सिंहासन, वाण, नालि, अक्ष, चामर, दुन्दुभि, पीठ, छत्र, मनुष्योंके निवास स्थान एवं नगर पौर उद्यानादिकोंकी संख्या प्रात्मांगुलसे ही समझना चाहिए ।।११२-११३।।
पादसे कोश-पर्यंतको परिभाषाएँ छहि अंगुलेहि पादो बेपादेहि विहत्यि-णामा य । दोणि विहत्थी हत्थो बेहत्थेहि हदे रिक्त ।।११४।। बेरिक्कूहि दंडो दंडसमा 'जुगधणूरिण मुसलं वा ।
तस्स तहा णाली वा दो-दंड-सहस्सयं कोसं ।।११५।।
प्रर्ष : छह अंगुलोंका पाद, दो पादोंकी वितस्ति, दो वितस्तियोंका हाथ, दो हाथोंका रिक्कू, दो रिक्कुप्रोंका दण्ड, दण्डके बराबर अर्थात् चार हाथ प्रमाणही धनुष, मूसल तथा नाली और दो हजार दण्ड या धनुषका एक कोस होता है ।।११४-११५।।
___ योजनका माप चउ कोसेहिं जोयण तं चिय वित्थार-गत्त-समवट्ट।
तत्तियमेत्तं घण-फल-माणेज्जं करण-कुसलेहिं ॥११६।। मर्थ :-चार कोसका एक योजन होता है। उतने ही अर्थात् एक योजन विस्तार वाले गोल गड्ढेका गणितशास्त्रमें निपुण पुरुषोंको धनफल ले पाना चाहिए ।।११६॥
गोलक्षेत्रको परिधिका प्रमाण, क्षेत्रफल एवं घनफल सम-चट्ट-वास-बम्गे दह-गुणिदे करणि-परिहियो होदि । वित्थार-तुरिय -भागे परिहि हदे तस्स खेत्तफलं ॥११७॥
१. [सगडाणं] २. द. युगधपूणि। ३. ब. वित्थारं। ४. द. ज, क. ठ. तुरिम ।