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२४ ] तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा १०८-१११ अर्थ :- अंगुल तीनप्रकारका है---उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल परिभाषासे सिद्ध किया गया अंगुल उत्सेधांगुल या सूच्यंगुल होता है ।।१०७॥
प्रमाणांगुलका लक्षण तं चिय पंच सयाई अवसप्पिणि-पढम-भरह-चक्किस्स ।
अंगुलमेक्कं चेव य तं तु पमाणंगुलं णाम ।।१०८।।
अर्थ :-पांचसौ उत्सेधांगुल प्रमाण, अवसपिणी कालके प्रथम चक्रवर्ती भरतके एक अंगुलका नामही प्रमाणांगुल है ।।१०८।। ।
आत्मांगुलका लक्षण जस्सि जस्सि काले भरहेरावव-महीसु' जे मणुवा ।
तस्सि तस्सि ताणं अंगुलमादंगुलं . णाम ॥१०॥
अर्थ –जिस-जिस कालमें भरत और ऐरावतक्षेत्रमें जो-जो मनुष्य हुआ करते हैं, उस-उस काल में उन्हीं मनुष्योंके अंगुलका नाम आत्मांगुल है ।।१०९।। ।
उत्सेधांगुल द्वारा माप करने योग्य वस्तुएँ उस्सेहअंगुलेणं सुराण-पर-तिरिय-णारयाण च ।
'उस्सेहस्य-पमाणं चउदेव-णिगेद-णयराणं' ॥११०।। . प्रर्थ :-उत्सेधांगुलसे देव, मनुष्य, तिर्यंच एवं नारकियोंके शरीरकी ऊँचाईका प्रमाण और चारोंप्रकारके देवोंके निवास स्थान एवं नगरादिकका प्रमाण जाना जाता है ।।११०।।
प्रमाणांगुलसे मापने योग्य पदार्थ दीयोवहि-सेलाणं वेदोण णवीण कुण्ड-जगदीणं ।
*वस्साणं च पमाणं होदि पमाणंगुलेणेव ॥१११॥
अर्थ :-द्वीप, समुद्र, कुलाचल, वेदी, नदी, कुण्ड, सरोवर, जगती और भरतादिक क्षेत्रका प्रमाण प्रमाणांगुलसे ही होता है ।।१११।।
२. ब, उस्सेह अंगुलो ।
३. ब. रिपकेदणज्य
रारिण।
४. द.ब. बंसाण
१.ब. क. महीस। ज. क.ठ. बंसाणं ।