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________________ तत्वार्थवृत्ति प्रस्तावना मागदशक जो पुरुष दुसरोके धन सन्तान, अथवा स्त्रियोंका हरण करता है उसे अत्यन्त भयानक यमदूत कालपाशम बांधकर बलात्कारसे तामित्र नरकमें गिरा देता है। इसी प्रकार जो पुरुष किसी दूसरेको धोखा देकर उसकी स्त्री आदिको भोगता है वह अन्धतामिस्र नरकमें पष्ठता है । जो पुरुष इस लोकमें यह शरीर ही में हैं और ये स्त्री धनादि मेरे हैं ऐमी बद्धिसे दूसरे प्राणियोसेवारविहारजालमहावन में ही लगा रहता है वह रौरव नरकमें गिरता है। जो झूर मनुष्य इस लोक में अपना पेट पालनेके लिए जीधित पशु मा पक्षियोंकों रोचता है उसे यमदूत कुम्भीपाक नरकमें ले जाकर खोलते हुए तेलमें रांधते है। जो पुरुष इस लोकमे खटमल आदि जीवोंकी हिंसा करता है वह अन्धकूप नरकमें गिरता है । इस लोकमें यदि कोई पुरुष अगम्या स्त्रीके साथ सम्भोग करता है अथवा कोई स्त्री अगम्य पुरुषसे व्यभिचार करती है तो यमदूत उसे तप्तमूमि नरक ले जाकर कोड़ोंसे पीटते हैं । तथा पुरुषको तपाए हुए लोहेकी स्त्री-मूर्तिसे और स्त्रीको तपायी हुई पुरुष-प्रतिमासे आलिंगन कराते हैं। जो पुरुष इस लोकम पा आदि सभीके साथ व्यभिचार करता है उसे यमदुत वज्यकण्टकशाल्मली नरकम ले जाकर वयके समान कठोर कांटोंवाले सेमरके वक्षपर चढ़ाकर फिर नीचेकी ओर खींचते हैं। जो राजा पा राजपुरूष इस लोकमें श्रेष्ठकूल में जन्म पाकर भी धर्मको मर्यादाका उच्छेद करते हैं वे उस मर्यादातिकमके कारण मरने पर वैतरणी नदीमें पटके जाते हैं । यह नदी नरकोंकी खाईके समान है । यह नदी मल, मूत्र, पीव, रक्त, केश, नख, हड्डी, चर्बी, मांस, मज्जा आदि अपवित्र पदार्थो से भरी हुई है । जो पुरुष इस लोकमें नरमेधादिके द्वारा भैरब, यक्ष, राक्षस, आदिका यजन करते हैं उन्हें वे पशुओंकी तरह मारे गये पुरुष यमलोकमें राक्षस होकर तरह तरह की यातनाएँ देते हैं तथा रक्षोगणभोजन नामक नरकमें कसाइयोंके समान कुल्हाड़ीसे काट काटकर उसका लोहू पीते हैं तथा जिस प्रकार वे मांसमोजी पुरुष इस लोकमें उनका मांस भक्षण करके आनन्दित होते थे उसी प्रकार भी उनका रक्तपान करते और आनन्दित होकर नाचते-गाते हैं। इसी प्रकार अन्य नरकोंमें भी प्राणी अपने-अपने कमक अनुसार दुख भोगते हैं । वैदिक परम्परा (विष्णु पुराणके आधारसे-) भूलोकका वर्णन-इस पृथ्वीपर सात द्वीप हैं जिनके नाम ये हैं-जम्बू प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौञ्च, शाफ और पुष्कर । ये दीप लवण, इल, सुग, घृत, दधि, दुग्ध और जल इन सात समुद्रोंसे घिरे हुए है। मत्र द्वीपोंके मध्य में जम्बूद्वीप है । जम्बूद्वीपके मध्य में सुवर्णमय मेरु पर्वत है जो ८४ हजार योजन ऊँचा है । मेरुके दक्षिणमे हिमवान्, हेमकूद और निषध पर्वत है तथा उत्तरमें नील, पवेत और श्रृंगी पर्वत हैं । मेरुके दक्षिण भारत, किम्पुरुष और हरिवषं ये तीन क्षेत्र है तथा उत्तरमें रम्यक, हिरण्यमय और उत्तरकुरु ये तीन क्षेत्र है। मेरुके पूर्व में भद्रापूर्व क्षेत्र है तथा पश्चिममें केतुमाल क्षेत्र है। इन दोनों क्षेत्रोंक बीचमें इलावृत क्षेत्र है । इलावृत क्षेत्रके पूर्व में मन्दर, दक्षिणमें गन्धमादन, पश्चिममें विपुल, उत्तरमें सुपार्य पर्वत है । मेरुके पूर्व में शीतान्त, चक्रमुन्न, कुररी, भाल्यवान् , बंका आदि पर्वत है । दक्षिणमें विकट, शिशिर, पता, रुचक, निषध आदि पर्वत हैं, पश्चिममें शिखिवास, वैदूर्य, कपिल, गन्धमादन आदि पर्वत हैं और उत्तरमं शंखक्ट, ऋषध, हंस, नाग आदि पर्वत है।। मरुके पूर्वमें चत्ररथ, दक्षिणमें गन्धमादन, पश्चिममें वभ्राज और उत्तरमें नन्दनवन हैं। अरुणोद, महाभद्र असितोद और मानस सरोवर है। मेरुके ऊपर जो ब्रह्मपुरी है उसके पाससे गंगानदी चारों दिशाओं में बहती है । सीता नदी भद्रापूर्वक्षेत्रसे होकर पूर्व समुद्र में मिलती है । अग्लकनन्दा नदी भारतक्षेषसे होकर समुद्र में प्रवेश करती है। चक्षुःनदी केतुमाल क्षेत्रमें बहती हुई समुद्र में मिलती है और भद्रानदी उत्तरकुरुमैं बहती हुई समुद्र में प्रवेश करती है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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