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________________ लोकवर्णन और भूगोल शाल्मली ( सेमर ) का वृक्ष है जिसके कारण इस द्वीपका नाम शाल्मलीद्वीप हुआ। इस द्वीपमें सुरोचन, सौमनस्य, रमणक, देववर्ष, पारिभद्र और अविशाल ये सात क्षेत्र हैं। स्वरस, शतम्टंग, वामदेव, कुन्द, मुकुन्द, पुष्पवर्ष और सहस्रश्रुति ये सात पर्वत है। अनुमति, सिनीवाली, सरस्वती, कुहू, रजनी, नन्दा और राका ये नदियां हैं। ११ मदिरा समुद्र से आगे उसके दूने विस्तारवाला कुशद्वीप है। यह द्वीप अपने ही परिमाणवाले तके समुद्रसे घिरा हुआ है। इसमें एक कुशोका साड़ है इसीसे इस द्वीपका नाम कुशद्वीप है । इस ठीपमें भी सात क्षेत्र हैं। चक्र, जतुः श्वंग, कपिल, चित्रकूट, देवानीक ऊर्ध्वरोमा और द्रविण ये सात पर्वत हैं । रसकुल्या, मधुकुल्या, मित्रवृन्दा देवगर्भा, घृतच्युता और मन्त्रमाला में सात नदियां हैं । धृत समुद्रसे आगे उससे द्विगुण परिमाणवाला कौञ्चद्वीप है। यह द्वीप भी अपने समान विस्तारवाले दूषके समुद्रसे घिरा हुआ है। यहां कौञ्च नामका एक बहुत बड़ा पर्वत है उसीके कारण इसका नाम द्वीप हुआ । इस द्वीपमें भी सात क्षेत्र हैं। शुक्ल, वर्धमान, भोजन, उपबहिण, नन्द, नन्दन और सर्वतोभद्र ये सात पर्वत हैं तथा अभया, अमृतौद्या, आयंका, तीर्थवती, वृतिरूपवती पवित्रवती और शुक्ला ये सात नदियां हैं। इसी प्रकार क्षमता आगे यहाारवाला शाकद्वीप है जो अपने ही समान परिमाणवाले मठेके समुद्रसे घिरा हुआ है। इसमें शाक नामका एक बहुत बड़ा वृक्ष हैं वही इस द्वीपके नामका कारण है। इस द्वीपमें भी सात क्षेत्र, सात पर्वत तथा सात नदियाँ हैं । इसी प्रकार ठेके समुद्रसे आगे उससे दूने विस्तारवाला पुष्कर द्वीप है । वह चारों ओर अपने समान विस्तारबाले मीठे जलके समुद्रसे घिरा हुआ है। वहां एक बहुत बड़ा पुष्कर (कमल) है जो इस द्वीप नामका कारण हैं। इस द्वीपके बीचोंबीच इसके पूर्वीय और पश्चिमीय विभागोंकी मर्यादा निश्चित करनेवाला मानसोत्तर नामका एक पर्वत है। यह दस हजार योजन ऊँचा और इतना ही लम्बा है। इस द्वीपके आगे लोकालोक नामका एक पर्वत है। लोकालोक पर्वत सूर्यसे प्रकाशित और अप्रकाशित भूभागों बीच में स्थित हैं इसीसे इसका यह नाम पड़ा। यह इतना ऊँचा और इतना लम्बा है कि इसके एक ओरसे तीनों लोकोंको प्रकाशित करने वाली सूर्यसे लेकर ध्रुव पर्यंत समस्त ज्योतिमण्डलकी किरणें दूसरी ओर नहीं जा सकतीं । समस्त भूगोल पचास करोड़ योजन है। इसका चौथाई भाग ( १२ || करोड़ योजन) यह लोकालोक पर्वत है | . इस प्रकार मूलोक का परिमाण समझना चाहिए। भूलोकके परिमाणके समान ही धुलोकका भी परिमाण है । इन दोनों लोकोंके बीचमें अन्तरिक्ष लोक है, जिसमें सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और artan निवास है । सूर्यमण्डलका विस्तार दस हजार योजन है और चन्द्रमण्डलका विस्तार बारह हजार योजन है । ans आदितीचे लोकों का वर्णन भूलोक के नीचे अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, और पाताल नामके सात भू-विवर (बिल) हूं। ये क्रमशः नीचे नीचे दस दस हजार योजनकी दूरी पर स्थित हैं। प्रत्येक बिलकी लम्बाई चौड़ाई भी दस दस हजार योजनकी है। ये भूमिके बिल भी एक करके स्वर्ग है । इनमें स्वर्गसे भी अधिक विषयभोग ऐश्वर्य, आनन्द, सन्तानसुख और घन-संपत्ति हूँ । तरकोंका वर्णन - समस्त नरक अट्ठाईस है । जिनके नाम निम्न प्रकार है - तामिल अन्धतामित्र, रौरव, महारौरव, कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, सूकरमुख, अन्धकूप, कृमिभाजन, सन्देश, सप्तसूमि, वाकष्टकशास्मली, वैतरणी, पयोद, प्राणरोध, विशसन, लालाभक्ष, सारमेयादन, अवीवि, अय:पान, क्षारकर्दम, रजोगणभोजन, शूलप्रोत दन्दशूक, अवरोधन, पर्यावर्तन और सूचीमुख ।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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