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________________ तत्त्वार्यवृत्ति-प्रस्तावना प्रमाण है । मूलमें मेरु पर्वत सोलह हजार योजन पृथ्वी के अन्दर है तथा शिखर पर बत्तीस हजार योजन फैला हुआ है। मेरुके उत्तरमें नील, श्वेत तथा श्रृंगवान ये तीन मर्यादागिरि हैं जिनके कारण रम्यक, हिरप्पमय और कुरुक्षेत्रोंका विभाग होता है। इसी प्रकार मेस्से दक्षिणमें निषष, हेमकूट, हिमालय ये तीन पर्वत हैं जिनके द्वारा हरिवर्ष, किम्पुरुष और भारत इन तीन क्षेत्रोंका विभाग होता है । इलावृत्त क्षेत्रसे पश्चिममें माल्यवान् पर्वत है जो केतुमाल देशकी सीमा का कारण है। इलावतसे पूर्वमें गन्धमादन पर्वत है अससे भद्राश्व देवाका विभाग होता है। मेरुके चारों दिशाओंमें मन्दर, मेरुमन्दर, सुपाल और कुमद में चार अवष्टम्भ पर्वत हैं। पारों पर्वतोपर आम्र, जम्बू, कदम्ब और न्यग्रोष ये चार विशालवृक्ष हैं। चारों पर्वतोंपर चार तालाब है जिनका जल दूध, मधु, इक्षुरस तथा मिठाई जसे स्वादका है। नन्दन, चैत्ररथ वैभ्राजक और सर्वतोभद्र ये चार देवोद्यान हैं। इन उधोनोंमें देव देवांगनाओं सहित विहार करते हैं। मन्दर पर्वतके ऊपर ११ सौ योजन ऊंचे आध वृक्षसे पर्वतके शिखर जसे स्थूल और अमृतके समान रसबाले फल गिरते हैं। मन्दर पर्वतमे अरुणोदा नदी निकलकर पूर्व में इलावृत क्षेत्रमें बहती है। अरुणोदा नदीका जल आग्न बक्षके फलोंके कारण .अक्षण रहता है। इसी प्रकार मेरुमन्दर पर्वतके ऊपर जम्बूद्वीप वृक्षके फल गिरते हैं। मेरुमन्दरपर्वतसे जम्बू नामकी नदी निकलकर दक्षिणमें इलायत क्षेत्रमं बहती है। जम्बूवृक्षके फलोंके रससे युक्त होने के कारण इस नदीका नाम जम्बू नदी है । सुपाश्वं पर्वत पर कदम्ब वृक्ष है। सुपार्श्व पर्वतसे पांच नदियां निकलकर पश्चिममें इलावृत क्षेत्रमें बहती हैं। कुमुद पर्वत पर शातवल्श नामका वट वृक्ष है। कुमुद पर्वतसे पयोनदी, दधिनदी, मधुनदी, घृतनदी, गुडनदी, अननदी, अम्बरनदी, मार्गदम्बासक्नवसाचारादीनिधिसबकाकी पताकरनेवाली नदियां निकलकर उत्तरमें इलायत क्षेत्रम बहती हैं। इन नदियोंके जलके सेवन करनेसे कभी भी जरा, रोग, मृत्यु, उपसर्ग आदि नहीं होते हैं । मेरुके मूलमें कुरंग, कुरर, कुसुम्म आदि बीस पर्वत हैं । मेरुसे पूर्वमें जठर और देवकूट, पश्चिममें पवन और परिपात्र, दक्षिणमें कैलास और करवीर, उत्तरमें विशृंग और मकर इस प्रकार आठ पर्वत हैं । मेरुके शिखर पर भगवान की शातकोम्भी नामकी चतुष्कोण नदी है । इस नगरीके चारों और आठ लोकपालोंके आठ नगर है। वक्षु और भद्रा इस प्रकार चार नदियां चारों दिशाओं में बहती हुई समद्रमें प्रवेश करती हैं। सोता नदी ब्रह्मसदनकेसर ,अचल आदि पर्वतोंके शिखरोंसे नीचे नीचे होकर गन्धमादन पर्वतके शिखरपर गिरकर भद्रापब क्षेत्रमें बहती हई पूर्व में क्षार ममद्रमें मिलती है। इसी प्रकार चक्षु नदी माल्यवान् पर्वतके शिखरसे निकलकर केतुमाल क्षेत्र में बहती हई समद्रम मिलती है। भद्रा नदी मेरुके शिखरले . निकलकर श्रृंगवान् पर्वतके शिखरसे होकर उत्तरकूहमें बहती हुई उत्तरके समुद्र में मिलती है। अलकनन्दा नदी ब्रह्मसदन पर्वतसे निकलकर भारतक्षेत्रमें बहती हई दक्षिणके समुद्र में मिलती है। इसी प्रकार अनेक नद और नदियां प्रत्येक क्षेत्रमें बहती हैं। भारतवर्ष ही. कर्मक्षेत्र है। शेष आठ क्षेत्र स्वर्गवासी पुरुषोंके स्वगंभोगसे बचे हुए पुग्मों के भोगनेके स्थान है । ___ अन्य डोमोंका वर्गम-जिस प्रकार मेरु पवंत जम्बूद्वीपसे घिरा हुआ है उसी प्रकार जम्बूद्वीप भी अपने ही समान परिमाण और विस्तारवाले खारे जलके समुद्रसे परिवेष्टित है। क्षार समुद्रभी अपनेसे दूने प्लक्षद्वीपसे घिरा हुआ है। जम्बूद्वीपमें जितना बड़ा जामुनका पेड़ है उतने ही बिस्तारवाला यहां प्लक्ष (पाकर)का वृक्ष है। इसीके कारण इसका नाम प्लक्षद्वीप हुआ। इस दीपमें शिव, यबस सुभद्र, शान्त, क्षेम, अमृत और अभय ये सात क्षेत्र है। मणिकूट, बचकूट, इन्द्रसेन, ज्योतिष्मान् सुपर्ण, हिरण्यठीव और मेखमाल ये सात पर्वत है। अरुण, नम्ण, आगिरसी, सावित्री, सुप्रभाता, ऋतम्भरा और सत्यम्भरा ये सात नदियां है। प्लक्षद्वीप अपने ही समान विस्तारवाले इसरसके समुद्रसे घिरा हुआ है। उससे आगे उससे दुगुने परिमाणवाला शास्मली द्वीप है जो उतने ही परिमाणवाले मदिराके सागरसे घिरा हुआ है। इस द्वीपमें
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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