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________________ मार्गदर्शक :- आचार्गनिधिमागर जी महाराज १३ इलावृतक्षेत्रके पूर्व जठर और देवर, दक्षिणमं गन्धमादन और कैलाश और पश्चिमम निषध और पारिपार और उत्तरमें विशृंग और जारुधि पर्वत हैं। पवनोंके बीचम मिदचारण देवोंमे मेविन खाई है और उनमें मनोहर नगर तथा वन है। समुद्र के उत्तरमें तथा हिमालयके दक्षिणमं भारत क्षेत्र है। इसमें भरतकी सन्तति रहती है। इसका विस्तार नौ हजार योजन है । इस क्षेत्रमें महेंद, मलय, सह, शुक्तिमान्, ऋक्ष, विध्य, और पारिपात्र ये सात क्षेत्र हैं। इस क्षेत्रम इन्द्रद्वीप, कशेरुमान, ताम्रवण, गधहस्तिमान्, नागद्वीप, मौम्य, गन्धर्व, वारुण और सागरसंवृत ये नव द्वीप हैं । हिमवान् पर्बनसे शनद्रु. चन्द्रभागा आदि नदियां निकली है । पारिपाय पर्वतसे वेदमुख, स्मृतिमुख आदि नदियां निकली है। विध्य पर्वतसे नर्मदा, सुरसा आदि नदियां निकली है। कृषि पर्वतसे तापी, पयोष्णि, निविन्ध्या आदि नदियां निकली हैं। मह्य पर्वतसे गोदावरी, भीमरश्री, कृष्णवेणी आदि नदियाँ निकली हैं। मलय पर्वतमे कृतमाल, ताम्रपर्णी आदि नदियाँ निकली है। महेन्द्र पर्वतसे त्रिसामा. आपकुल्या, आदि नदियां निकली है। शुक्तिमान् पर्नसमे त्रिकुल्या, कुमारी आदि नदियां निकली हैं। प्लक्षद्वीप-इस द्वीपमें शान्तिमय, गिटार, सम्बद, आनन्द, शिव, क्षेमक, और ध व ये सान क्षेत्र है। तथा गोमेंद्र, चन्द्र, नारद, दुन्दुभि, सामक, सुमन और वैधाज में सात पर्वत हैं। अनुतप्ता, शिखी, विपाशा, त्रिदिवा, मु. अमुना और सुकता, ये सात नदियां हैं। शाल्मलिद्वीप--इम द्वीपमें श्वेत. हरित, जीमृत, रोहित, वंद्युत, मानस और मुप्रभ ये सात क्षेत्र हैं। कुमुद, उन्नत, बलाहक, द्रोण, कडू. महिष और बबुम ये मात पर्वत है। यांनी, तोया, वितृष्णा, चन्द्रा, शुक्ला, विमोचनी और निवत्ति में सात नदिया है। कुशद्वीप-इस द्वीपमं उद्भिद्, वेणुमत्, वैरथ, लम्बन, लि, प्रभाकर, और कपिल य सान क्षेत्र हैं। विम, हेमर्शल, शुक्तिमान, पुष्पवान, कौशय, हरि और मन्दगचल यं मात पर्वत है। धनपापा, शिवा, पवित्रा, संमति, विद्युदंभा, मही आदि मात नदियाँ हैं। क्रौञ्च द्वीप-इस द्वीपमें कुशल, मन्दक, उष्ण, पीवर, अन्धकारक, मुनि और दुन्दुभि यं सात क्षेत्र है। क्रौञ्च, वामन, अन्धवारक, देवावृत, पृण्डरीकवान्, बुन्दुभि और महाशैल में साल पर्वत है। गौरी, कुमुद्दती, सन्ध्या, रात्रि, भनोजया, क्षान्ति और पुण्डरीका ये मात नदियाँ हैं 1 शाक द्वीप-इस द्वीपमं जलद, कुमार, सुकुमार, मनीचक, कुसुमोद, मौदाकि और महाद्रम यं मात क्षेत्र है। उदयगिरि, जलाधर, वतक, श्याम अस्तगिरि, अञ्चिकेय और केसरी ये सात पबंत हैं। मुकुमारी, कुमारी, नलिनी, चेनुका, दक्षु, वेणका और गभस्ती ये सात नदियाँ है । पुष्कर दीप-इस द्वीपमें महावीर और धानकीखण्ड ये दो क्षेत्र । मानुसोत्ता पर्वत पृष्काहीप के बीच स्थित है। अन्य पर्वत तथा नदियां इस द्वीपमं नहीं हैं। भूगोलकी इन परम्पराओंका तुलनात्मक अध्ययन हमें इस नतीजे पर पहुंचाता है कि आजम दो ढाई हजार वर्ष पहिले भुगोल और लोक यणेनकी करीब करीब एक जैसी अन श्रुतियाँ प्रवलित थी। जैन अनुश्रुतिको प्रकृत तत्त्वार्थसूत्रके तृतीय और चतुर्थ अध्यायमें निबद्ध किया गया है। लोकका पुरुषाकार वर्णन भी योगभाष्यमें पाया जाता है। अतः ऐतिहासिक और उस समयकी साधनसामग्रीको दृष्टिसे भारतीय परम्पराओंका लोकवर्णन अपनी खारा विशेषता रखता है। आजके उपलब्ध भगोलमें प्राचीन स्थानोंकी खोज करनेपर बहन कुछ तथ्य सामने आ सकता है । प्रस्तुतत्ति-इस वृत्तिका नाम तन्वार्थवृत्ति है जैसा कि स्वयं श्रुतिसागरमूरिने ही प्रारम्भमें लिखा है “वश्य तत्त्वार्थवृत्ति निजयिभवतया श्रुतोदन्तदाख्यः ।" अर्थात में श्रुतसागर अपनी शक्निक अनुसार तत्त्वार्थवृत्तिको कहूँगा। अध्यायोंके अन्तमें आनेवाली पुष्पिकाओंमें इसके 'तत्त्वार्यटोकायाम्',
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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