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दसवाँ अध्याय क्षेत्र में सिद्ध दो प्रकार से होते हैं-जन्मसे और संहरणसे। सहरणसिद्ध अल्प है और जन्मसिद्ध उनसे संख्यातगुणे है । क्षेत्र के कई भेद है- कर्मभूमि, अकर्मभूमि, समुद्र, द्वीप, अलोक, अधोलोक और तिर्यग लोक । उनमें से ऊर्ध्वलोकसिद्ध अल्प हैं, अधोलोकसिद्ध उनसे संस्थातगुणे हैं और तिर्यक्लोकसिद्ध उनसे संख्यातगुणे है । समुद्रसिद्ध सबसे कम हैं और द्वीपसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। विशेषरूपसे लवणोदसिद्ध सबसे अल्प हैं, कालोद सिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार जम्बूद्वीपसिद्ध, धातवीखजद्वीपसिद्ध और पुष्कराचंद्वीपसिद्ध क्रमस मंख्यातगुणे संख्यासगुणे अधिक है । कालकी अपेक्षा अल्पबहुत्व-निश्चय नयसे जीव एक समयमें सिद्ध होते हैं अतः अन्यबहुत्व नहीं है । व्यवहारनयसे उत्सर्पिणी कालमें सिद्ध होनेवाले अलर हैं और अवसर्पिणी काल में सिद्ध होनेवाले उनमें कुछ अधिक है। अनुत्सर्पिणी काल में सिद्ध होनेवाले उनसे कुछ अधिक है । और अनुत्सर्पिणी तथा अनयामशीकाल में सिनहोनेवावेशितााणे राज
गतिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व-निश्चयनयसे सिय सिद्धगतिमें सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है। व्यवहारनयसे भी अल्पाहुन्य नहीं है क्योंकि सब मनुष्यगति से सिद्ध होते हैं।
कान्तरगति (जिसगतिसे मनुष्यगतिमें श्राकर मोक्ष प्राप्त किया हो) की अपेक्षा अल्पबहुत्व इस प्रकार है--तिरगतिसिद्ध अत्यल्प है। मनुष्यगतिसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। नरकगतिसिद्ध उनसे संख्यातगुणे है। और देवगतिसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं।
वेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्य-निश्चय नयसे सब अवेरसे सिद्ध होते हैं अतः अल्पघहुस्व नहीं है । व्यवहार नयसे नपुंसकवेद सिद्ध सबसे कम है। स्त्रोवेदसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं और पुंवेमसिद्ध उनसे सस्यासगुणे हैं। कहा भी है
"नपुंसकवेवाले बीस, स्त्रीचाले चालीस और पुरुषवेदयाले अड़तालीस जीय सिस होते हैं।
इसी प्रकार आगम के अनुसार वीर्थ चारित्र, आदिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व जान रना चाहिये।
दमयाँ अध्याय समाप्त