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________________ तत्त्वाधिगम के उपाय ३ यह कि मात्र शास्त्र होने के कारण ही हर एक पुस्तक प्रमाण और ग्राह्य नहीं कही जा सकती। अनेक टीकारोंने भी मुलग्रन्थका अभिप्राय समझने में भलं की है । अग्नु । हमें यह ती मानना ही होगा कि शारक पुस्पकृत हैं। पद्यपि महापुरुष विशिष्ट ज्ञानी और मोक कल्याणकी सदभावनाबाले थे पर क्षायोपशामिकज्ञानवा या गरम्प रावदा मनभेदकी जायश तो हो ही सकती है। एमे अनेक मतभेद गोम्मटमार आदिम स्वयं उलिथिन । अनः मात्र विषयक सम्यग्दर्शन भी प्राप्त करना होगा कि शात्रम किस युगमं किन पात्रके लिए किस विवक्षाने क्या बात लिखी गई है ? उमका ऐतिहासिक पर्यवेक्षण भी काना होगा। दानशाम्बके ग्रन्याम खण्डन गाड़ा के प्रगंगम ताकालीन या पूर्वकालीन ग्रन्थोंका परपरमें आदान-प्रदान पान पसे हुआ है। अतः आत्म रामाधकको जन संस्कृतिकी शास्त्र विषयकः दष्टि भी प्राप्त करनी होगी। हमारे यहां गणकत प्रमाणला है। गणवान वक्ता के द्वारा कहा गया हास्थ जिसमें हमारी मलधागग विरोध न जाता है प्रमाण है। इसीतरह हमें मन्दिर, गम्या, मगाज. शरीर. जोवन, विवाह आयिका मम्यग्दर्शन कर के सभी प्रवतियोंकी पुनारबना अमममत्वके आना करनी चाहिए नभी मानव जातिका कल्याण र अक्तिकी मुक्ति हो सकेगी। मार्गदर्शक :- आचार्य श्री.विशिष्मागर जी महाराज झानं प्रमाणमात्मादेरुपायो न्याम इष्यते । नयो शातुरभिप्रायो यक्तितोऽर्थपरिग्रहः ॥"-घीय० । अकलंत्रदेवनं रघीयस्वय बत्तिम बनाया जीयदि पोंका गवत्रम निक्षत्र हाम न्याम करना चाहिए, नमी प्रमाण जार नयन उनमा पचावन् सम्पशन होता। जान प्रमाण होता है । आक्ष्माविको रखने का उपाय न्यान है। जाना अभिप्रायको नय कहने । प्रमाण और न जानात्मक दपाय है और निक्षेप वर तुम्प है। इसीलिए सोने नया माप णि आदि में है। गा है कि अमुक नय अमर निको विषय बना। निक्षेप-निक्षेपका अर्थ है रखना अथांत वक्षमा विलषण कर उसकी थिनिकी दिलने प्रकारको समावनाएं हो सकती है उनको सामने रखना जंगे 'गजाको वनाओं परी गजा मार लाना इन की पदोंका अर्थबोध करना है । गजाननेक प्रकार होन हैन 'गजा हम इनको भी गजा वह हं. पट्टीपर लिखे हुए 'राजाइन अनगंको भी गजा कहते हैं, जिस व्यक्तिका साम राजा है जमे भी गजा कहते हैं, गजाने चित्रको या मतिको भी गजा कहले, दानरंजन महगं भी राजा होता है। को आगे गजा होमंत्राला है उसे भी लोग आजम ही राजा कारन लगत हे, जा ज्ञानवा नी जा कहते हैं, जो वर्तमानम पासनाधिकारी है उगे भी जा रही है। अनः हम कोन : विधित है: बच्चा यदि राजा मानता है तो जम गमय लिन नजाबी गावश्यबान होगी, जरजरं गगय कोन यता अपेक्षित होना है। अनेक प्रकारे गजाआगे अरन्तनवा नगरण का विक्षिा गजवा जान करा देना निक्षपना प्रयोजन है। राजाविषयक संशयका निराकरण कर विक्षिा गजाविषयब यथार्यनत्र करा घेना ही निक्षेपका कार्य है । इसी तरह क्याना भी अनेक प्रकारका होता है। ना गजानना ' इस वाक्पमें जो वर्तमान शासनाधिकारी है वह भात्र गजा विलिन है. नन्दाजा, न जाननजा न लिपिराजा न मुनिराजा न भावीगजा आदि । पुरनी पन्न गं अपन विधिन अका लटोक जाट कराने के लिए प्रत्येक शब्दके संभावित बाच्याओंको सामने रखकर उनका त्रिलषण करनवी परिमाटी थी। आगमोंमें प्रत्येक पान्दका निक्षेप किया गया है । यहीं तक कि शेष' दाव्द और 'व' शब्द भी निरंप विधिम भलाये नहीं गये है । शब्द ज्ञान और अर्थनीन प्रकार व्यवहार चलते हैं। यहां शन्दबहान कार्य बलदा
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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