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तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[८।१२-१३ सप्रतिष्ठित प्रत्येक और अप्रतिष्ठित प्रत्येक जिस शरीरका मुख्य स्वामी एक ही जीव हो लेकिन उसके आश्रित अनेक साधारण जीव रहते हों वह सप्रतिष्ठित प्रत्येक है। और जिस शरीरके आश्रित अनेक जीव न हों वह अप्रतिष्ठित प्रत्येक है। गाम्मटसार जीवकाण्ड में सप्रतिष्ठित प्रत्येक और अप्रतिष्ठित प्रत्येककी पहिचान इस प्रकार बतलाई है। जिनकी शिरा और सन्धिपर्व (गांठ ) अप्रकट हों, जिनका भंग करने पर समान भंग हो जॉय, और दोनों टुकड़ों में परस्पर में तन्तु (रेसा) न लगा रहे तथा जो तोड़ने पर भी बढ़ने लगे और जिनके मूल, कन्द, छिलका, कोपल, टहनी, पत्ता, फूल, फल और बीजोको तोड़ने पर समान भंग हो उनको सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं। इसके अतिरिक्त वनस्पतियों को अप्रति ष्ठित प्रत्येक कहते हैं।
जिम उदय का इन्द्रिय आदि जीवों में जन्म हो उसको त्रस नाम कहते हैं। जिमके उदयसे पृथिवोकाय आदि एफेन्द्रिय जाबों में जन्म हो उसको स्थावर नाम कहते हैं। जिसके उदयस किसी जीवको देखने या सुननेपर उसके विषयमें प्रीति हो वह सुभगनाम है। जिमके उदयसे रूप और लाचण्यसे सहित होनेपर भी जीव दूसरोंको अच्छा न लगे वह दुर्भगनाम है। जिसके उदयसे मनोहर स्वर हा वह सुस्वर नाम है। जिसके उदयसे गधे आदिके स्वरकी तरह कर्कश स्वर हो वह दुर्भगनाम है। जिसके उदयसे शरीर सुन्दर होता है वह शुभनाम है। जिसके उदयसे शरीर असुन्दर होता है वह अशुभ नाम है । जिसके उदयसे सूक्ष्म शरीर हाता है वह सूक्ष्म नाम है। जिसके उदयसे स्थूल शरीर होता है वह बादर नाम है। जिसके उदयसे आहार आदि पर्याप्तियोंकी पूर्णता हो उसको पर्याप्ति नाम कहते हैं। जिसके उदय से पर्याप्ति पूर्ण हुप बिना ही जीव मर जाता है वह अपर्याप्ति नाम है। जिसके उदयसे शरीरकी धातु और उपघातु स्थिर रहें वह स्थिर नाम है। जिसके त्यसे धातु और उपधातु स्थिर न रह वह अस्थिर नाम है। जिसके उदयसे कान्ति सहित शरीर हो यह आय नाम है । जिसके उदयसे कान्तिर हित शरीर हो वह अनादेय नाम है। जिसके उदयसे जीवकी संसारमें प्रशंसा हो वह यशःकीर्ति नाम है। जिसके उदयसे जीवकी
संसारमें निन्दा हो वह अयशःकीति नाम है और जिसके उदयसे जीव अहन्त अवस्थाको . प्राप्त करता हे वह तोथंकर नाम है। इस प्रकार नामकर्मके मूल भेद व्यालीस और उत्तर भेद तेरानबे होते हैं।
गोत्रकर्मके भेद--
उच्चैींचैश्च ॥ १२ ॥ गोत्र कर्म के दो भेद हैं-लफचगोत्र और नीचगोत्र । जिसके उदयसे लोकमान्य इस्त्राकुवंश, सूर्यवंश, हरिवंश आदि कुलमें जन्म हो उसको उच्चगोत्र कहते हैं। जिसके उदयसे लोकांनन्दा दरिद्र, भ्रष्ट आदि कुल में जन्म हो उसको नीधगोत्र कहते हैं।
अन्तरायके भेद-- दानलाभभोगोषभोगवीर्याणाम् ॥ १३ ॥ दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय ये अन्तरायके पाँच भेद हैं।
जिसके उदयमे दानकी इच्छा होने पर भी जीय दान न दे सके वह दानान्तराय है। जिसके उदयसे लाभ न हो सके वह लाभान्तराय है। जिसके उदयसे इच्छा होने पर भी