SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८1११] आठवाँ अध्याय કડવું एक इन्द्रिय ( ? ) से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवोंके केवल असंप्राप्तामृपादिकासंहनन होता है । असंख्यातवर्षकी आधुबालोंक ही वनवृषभनाराच संहनन होता है । चौथे कालमें छहों संहनन होते हैं । पाँचवें कालमें अन्तके तीन संहनन होते हैं । छटवें कालमें केवल असंप्राप्तास्पाटिका संहनन होता है। विदेह क्षेत्रमें, विद्याधरों के स्थानों में और म्लेच्छखंडों में मनुष्यों और तिर्य के छहों संहनन होते हैं। नगेन्द्र पर्वतसे बाहर तिर्यकचोंके छहों संहनन होते हैं। कर्मभूमिमें उत्पन्न होने वाली स्त्रियों के आदिके तीन संहनन नहीं होते हैं, केवल अन्तके तीन संहनन होते हैं। आदिके सात गुणस्थानों में छहों संहनन होते हैं। उपशमश्रेणीके चार गुणस्थानों ( आठवेसे ग्यारहवें तक ) में आदिके तीन संहनन होते हैं । क्षपक श्रेणीके चार गुणस्थानों मार्गदर्शक जियश्री सोवाहासागर में राजयोगकेवली गुणस्थानमें श्रादिका एक ही संहनन होता जिसके उदय से स्पर्श 'उत्पन्न हो वह स्पर्श नामकर्म है । स्पर्शके आठ भेद हैकोमल, कठोर, गुरु, लघु, शीत, उरण, स्निग्ध और रूक्ष । ___ जिसके उदयसे रस उत्पन्न हो वह रस नामकर्म है। रसके पाँच भेद है-तिक, कडु, कषाय, आम्ल और मधुर। जिसके उदयसे गन्ध हो वह गन्ध नामकर्म है । गन्धके दो है--सुगन्ध और दुर्गन्ध । _जिसके उदयसे वर्ण हो वह वर्ण नामकर्म है। वर्ण के पाँच भेद हैं-शुक्ल, कृष्ण, नील, रक्त और पीत । जिसके उदयसे विप्रहगतिमें पूर्व शरीरके श्राकारका नाश नहीं होता है उसको आनुपूर्य नामकर्म कहते हैं। इसके चार भेद हैं-नरकगत्यानुपूर्व्य, तिर्थमात्यानुपूयं, मनुष्यगत्यानुपूर्व्य और देवगत्यानुपूर्दा । कोई मनुष्य मरकर नरकमें उत्पन्न होनेवाला है. लेकिन जब तक, बह नरकमें उत्पन्न नहीं हो जाता तब तक आत्माके प्रदेश पूर्व शरीरके श्राकार ही रहते हैं इसका नाम नरकगत्यानुपूर्ण्य है। इसी प्रकार अन्य आनुपूल्यों के लक्षण जानना चाहिये। जिसके उदयसे जीवका शरीर न तो लोहेके गोले की तरह भारी होता है और न रुई के समान हलका ही होता है वह अगुरुलघु नाम है। जिसके उदयसे जीव स्वयं ही गले में पाश बाँधकर, वृक्ष आदि पर दंगकर मर जाता है वह अपघात नाम है। शस्त्रघात, विषभक्षण, अग्निपात, जलनिमज्जन आदिके द्वारा आत्मघात करना भी उपधात है। जिसके उदयसे दूसरोंके शस्त्र आदिसे जीवका घात होता है यह परघात नाम है। जिसके उदयसे शरीरमें आताप हो वह आतप नाम हैं। जिसके उदयसे शरीर में उद्योत हो वह उद्योत नाम है जैसे चन्द्रमा,जुगनू आदिका शरीर जिसके उदयसे उच्छवास हो वह उच्छवास नाम है। जिसके उदयसे आकाशमें गमन हो यह विहायोगति नाम है । इसके दो भेद है-प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्तविहायोगति । गज, वृषभ, हंस आदिके गमन की तरह सुन्दर गतिको प्रशस्त बिहायोगति और ऊँट, गधा, सर्प आदिके समान कुटिल गतिको 'अप्रशस्त बिहायोति कहते हैं। जिसके उदयसे एक शरीरका स्वामी एक ही जीव हो वह प्रत्येक शरोर नाम है। जिसके उदयसे एक शरीरके स्वामी अनेक जीव हों वह साधारण शरीर नाम है। वनस्पति कायके दो भेद है-साधारण और प्रत्येक । जिन जीवोंका श्राहार और स्वासोन्छ्वास एक साथ हो उनको साधारण कहते हैं। प्रत्येक वनस्पतिके भी दो भेद है
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy