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आठवाँ अध्याय
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जीव भोग और उपभोग न कर सके वह भोगान्तराय और उपभोगान्तराय है । और जिसके उदयसे जीव उद्यम या उत्साह न कर सके उसको वीर्यान्तराय कहते हैं ।
स्थितिबन्धका वर्णन -
आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोव्यः परा स्थितिः ॥ १४ ॥
ज्ञानाचरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोढ़ी सागर है । यह स्थिति संज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्तक मिध्यादृष्टि जीवकी है । एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवके उक्त कर्माको उत्कृष्ट स्थिति सागर है ।
दो इन्द्रियकी स्थिति पच्चीस सागरके सात भागों में से तीन भाग, तीन इन्द्रियकी स्थिति पचास सागर के सात भागों में से तीन भाग और चार इन्द्रियकी उत्कृष्ट स्थिति सौ सागर के सात भागों में से तीन भाग है। असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकके उक्त कर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति एक हजार सागर के सात भागों में से तीन भाग है । असंशी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवके ज्ञानावरणादि चार कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति तीस अन्तः कोड़ाकोबी सागर है। अपर्या शक एकेन्द्रिय, हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिंद्रिय और असंक्षी पञ्चेन्द्रिय जीवोंके उक्त कर्मोंकी कष्ट स्थिति पर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट स्थिति में से पश्य के असंख्यातवें भाग कम है। मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति
मार्गदर्शक :- अ)
असतात महिनासम६ी महाराज
मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति ससर कोड़ाकोड़ी सागर है। यह स्थिति संक्षी पञ्चेन्द्रिय मिध्यादृष्टि जीवक मोहनीय कर्म की है।
उक्त स्थिति चारित्र मोहनीयकी है। दानमोहनीयको उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोदा. कोड़ी सागर है। पर्याप्तक एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय जीवोंके मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति क्रम से एक सागर, पच्चीस सागर, पचास सागर और सौ सागर है । पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट स्थिति में से पत्यके असंख्यातवें भाग कम एकेन्द्रियसे चतुरिन्द्रियपर्यन्त अर्याक जीवोंके मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति । असंज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति एक हजार सागर है। और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके मोहनीयको उत्कृष्ट स्थिति त्यके असंख्यातवें भाग कम एक हजार सागर है।
यहाँ ज्ञानावरणादि कर्मोकी स्थितिके समान सागरोंके सात भाग करके तीन भागका ग्रहण नहीं किया गया है किन्तु पूरे पूरे सागर प्रमाण स्थिति बतलाई गई है। नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति
विंशतिर्नामगोत्रयोः ॥ १६ ॥
नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागर है । यह स्थिति संज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्तक मिध्यादृष्टि जीवकी है। पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवोंके नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागर के सात भागों में से दो भाग है। पर्याप्तक दो इन्द्रिय जीवके नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति पचीस सागरके सात भागों में से दो भाग है। पर्याप्तक तीन इन्द्रिय जीवके नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति पचास सागरके सात भागों में से दो