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तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
व्रत मंद देश सर्वतोऽथुमहती || २ ॥
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के दो भेद हैं- अगुवत और महाव्रत । हिंसादि पापके एकदेशत्यागको अणुव्रत और सर्वशत्यागको मात्र कहते हैं । अणुव्रत गृहस्थांके और महाव्रत मुनियों के हो है ।
की स्थिरता की कारणभूत भावनाओं का वर्णन
तत्स्थैर्या भावनाः पञ्च पञ्च ॥ ३ ॥
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज जिस प्रकार उम्र औषधियां रसादिकी भावना देनेसे विशिष्ट गुणवाली हो जाती हैं उसी तरह अहिंसादि व्रतभी भावनाभावित होकर सत्फलदायक होते हैं । उन अहिंसा आदि की स्थिरता के लिये प्रत्येक व्रतकी पाच पांच भावनाएँ हैं । हिंसाकी पांच भावनाएँ-
बाङ मनोगुतीर्यादाननिक्षेपण समित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च ॥ ४ ॥
चचनगुमि, मनोगुप्ति, इर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकितपानभोजन ये अहिंसा की पाँच भावनाएँ हैं ।
वचनको वशमें रखना वचनगुप्ति और मनको वशमें रखना मनोगुप्ति हैं। चार हाथ जमीन देखकर चलना ईर्यासमिति है । भूमिको देख और शोधकर किसी वस्तुको रखना या उठाना आदाननक्षेपणसमिति हैं । सूर्यके प्रकाशसे देखकर खाना और पीना आलोकितपानभोजन है ।
सत्यत्रतकी पाँच भावनाएँ
क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवचिभाषणं च पञ्च ॥ ५ ॥
क्रोधप्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचिभाषण ये सत्यव्रतकी पांच भावनाएँ हैं ।
क्रोधका त्याग करना को प्रत्याख्यान है। लोभको छोड़ना लोभप्रत्याख्यान है । भय नहीं करना भयप्रत्याख्यान है। हास्यका त्याग करना हास्यप्रत्याख्यान हैं और निर्दोष वचन बोलना अनुवचिंभाषण है।
अचत्रितकी भावनाएँ----
शून्यागार विमोचितावास परोपरोधाकरणभैक्षशुद्धिसधर्माऽविसंवादाः पञ्च ॥ ६ ॥ शुन्यागारावास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, वशुद्धि और समविसंवाद ये अचौर्य की पाँच भावनाएँ हैं ।
पर्वत, गुफा, वृक्ष कोटर, नदीवट आदि निर्जन स्थानों में निवास करना शून्यानारावास है। दूसरोंके द्वारा छोड़े हुए स्थानों में रहना विमोचितावास है । दूसरोंका उपरोध नहीं करना अर्थात् अपने स्थानमें ठहरनेसे नहीं रोकना परोपरोधाकरण है। आचारशास्त्र के च्अनुसार भिक्षा की शुद्धि रखना भैक्षशुद्धि हैं। और सहधर्मी भाइयोंसे कलह नहीं करना
संवाद है ।