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________________ ४२८ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [५३२-३. दो अणुओंके मिल जानेसे दो प्रदेशवाला स्कन्ध बन जाता है । दो प्रदेशवाले स्कन्ध के साथ एक अणु के मिल जानेसे तीन प्रदेशवाला स्कन्ध हो जाता है। इस प्रकार संघातसे संख्यात, असंख्यास और अनन्त प्रदेश परिमाण स्कन्धकी उत्पत्ति होती है। भेदसे भी स्कन्धोंकी उत्पत्ति होती है । संख्यात और अनन्त प्रदेशवाले स्कन्धों के भेद ( टुकड़े) करनेसे विप्रदेशपर्यन्त अनेक स्कन्ध बन जाँयगे । इसी प्रकार भेद और संघात दोनोंसे भी स्कन्धकी उत्पत्ति होती है। कुछ परमाणुओसे भेद होनेसे और कुछ परमाणुओंके साथ. संघात होनेसे स्कन्धकी उत्पत्ति होती है। अणुकी उत्पत्तिका कारण --- भेदादणुः॥ २७॥ परमाणुकी उत्पत्ति भेदसे ही होती है--संघात और भेद-संघातसे अणुकी उत्पत्ति नहीं होती है। किसी स्कन्धके परमाणु पर्यन्त भेद करनेसे परमाणुकी उत्पत्ति होती है। श्य स्कन्धकी उत्पत्तिका कारण भेदसंघाताम्यां चाक्षुषः ॥ २८ ॥ धानुष अर्थात् चनु इन्द्रियसे देखने योग्य स्कन्धोंकी उत्पत्ति भेद और संघातसे मार्गदर्शकहोती हाकवल भनिहायानन्त अाका संघात होनेपर भी कुछ स्कन्ध चाक्षुष होते हैं और कुछ अचाक्षुष । जो अचाक्षुष स्कन्ध है इसका भेद हो जाने पर भी सूक्ष्म परिणाम यने रहने के कारण वह चाक्षुष नहीं हो सकता । लेकिन यदि उस सूक्ष्म स्कन्धका भेद होकर अर्धात् सूक्ष्मत्वका विनाश होकर अन्य किसी चानुष स्कन्धके साथ सम्बन्ध हो जाय तो वह घशक्षुष हो जायगा । इस प्रकार चाक्षुष स्कन्धकी उत्पत्ति भेद और संघात दोनों से होती है । व्यका लक्षण सद्व्य लक्षणम् ॥ २९ ॥ द्रव्यका लक्षण सत् है, अर्थात् जिसका अस्तित्व अथवा सस्ता हो वह द्रव्य है । सत्का स्वरूप उत्पादच्ययधौव्ययुक्तं सत् ॥ ३० ॥ जो उत्पाद, व्यय और धौम्य सहित हो वह सत् है । अपने मूल स्वभाव को न छोड़कर नवीन पर्यायकी उत्पत्तिको उत्पाद कहते हैं। जैसे मिट्टी के पिण्डसे घट पर्यायका होना। पूर्व पर्यायका नाश हो जाना व्यय है जैसे घटकी उत्पत्ति होने पर मिट्टीके पिण्डका विनाश व्यय है। धौव्य द्रव्यके उस स्वभावका नाम है जो व्यकी सभी पर्यायों में रहता है और जिसका कभी विनाश नहीं होता जैसे मिट्टी। पर्यायोंका उत्पाद-विनाश होने पर भी द्रव्य स्यभाषका अन्वय बना रहता है। प्रश्न-भेद होने पर युक्त शब्दका प्रयोग देखा जाता है जैसे देवदत्त दण्डसे युक्त है। इसी तरह यदि उत्पाद, व्यय, धौम्य और द्रव्यमें भेद है तो दोनोंका अभाव हो जायगा क्योंकि उत्पाद, व्यय और धौम्यके बिना इन्यकी सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती और द्रव्य के अभाव में उत्पाद, व्यय और प्रौव्य भी संभव नहीं है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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