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पचम अध्याय
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freraत्मक छाया है। और चन्द्र आदिका जल में जो प्रतिविम्य होता है वह प्रतिबिम्बात्मक छाया है ।
सूर्य, वह्नि आदि में रहनेवाली उष्णता और प्रकाशका नाम आता है । चन्द्रमा, मणि, खद्योत ( जुगुनू ) आदिसे होनेवाले प्रकाशको उद्योत कहते हैं । उक्त शब्द आदि दश पुद्गल द्रव्यके विकार या पर्याय हैं। सूत्र में 'च' शब्द से अभिघात, नोवून आदि अन्य भी पुद्गल द्रव्यके विकारोंका प्रहण कर लेना चाहिये । पुद्गल के भेद
अणत्रः स्कन्धाश्च ।। २५ ।।
पुद्गल द्रव्यके दो भेद हैं- अणु और स्कन्ध । अणुका परिमाण आकाश के एक प्रदेश प्रमाण है । यद्यपि परमाणु प्रत्यक्ष नहीं हैं लेकिन उसका स्कन्धरूप कार्यों को देखकर अनुमान कर लिया जाता है ।
परमाणुओं में दो विरोधी स्पर्श, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस रहता है, ये स्वरूप अपेक्षा नित्य हैं लेकिन स्पर्श आदि पर्यायोंको अपेक्षासे अनित्य भी हैं। इनका परिमाण परिमण्डल ( गोल ) होता है | नियमसारमें परमाणुका स्वरूप इस प्रकार
बतलाया
"यादर्शक :
जिसका वही आदि वही मध्य और वही अन्त हो, जो इन्द्रियोंसे नहीं जाना जा सके ऐसे अविभागी द्रव्यको परमाणु कहते हैं ।"
स्थूल होने के कारण जिनका ग्रहण, निक्षेपण आदि हो सके ऐसे पुद्गल परमाणुओं के समूहको स्कन्ध कहते हैं । ग्रहण आदि व्यापारकी योग्यता न होने पर भी उपचारसे दूचपुक आदिको भी स्कन्ध कहते हैं ।
यद्यपि पुद्गल के अनन्त भेद हैं लेकिन अणुरूप जाति और स्कन्धरूप जातिकी अपेक्षा से दो भेद भी हो जाते हैं ।
प्रश्न – जाति में एकवचन होता है फिर सूत्र में बहुवचनका प्रयोग क्यों किया ? उत्तर- अणु और स्कन्धके अनेक भेद बतलाने के लिये बहुवचनका प्रयोग किया गया है।
यद्यपि 'अणुस्कन्धाच' इस प्रकार एक पदवाले सूत्रसे ही काम चल जाता लेकिन पूर्व के दो सूत्रों में भेद बतलाने के लिये 'अश्वः स्कन्धा' इस प्रकार दो पदका सूत्र बनाना पड़ा । 'स्पर्शरसगन्धवर्णयन्तः पुद्गला:' इस सूत्रका सम्बन्ध केवल अणुसे है अर्थात् परमाशुओं में स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाये जाते है । लेकिन स्कन्धका सम्बन्ध 'स्पर्शरस' इत्यादि और 'शबन्ध' इत्यादि दोनों सूत्रों से है। स्कन्ध स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले होते हैं तथा शब्द बन्ध आदि पर्यायवाले भी होते हैं ।
इस सूत्र में 'च' शब्द समुच्चयार्थक है। अर्थात् अणु ही पुद्गल नहीं हैं किन्तु स्कन्ध भी पुद्गल हैं । निश्चयनयसे परमाणु ही पुद्गल हैं और व्यवहारनयसे स्कन्धभी पुद्गल हैं ।
उत्पतिका कारण --
भेदसङ्घातेभ्य उत्पद्यन्ते ।। २६ ॥
स्कन्धकी उत्पत्ति भेद, संघात और दोनोंसे होती है। भेद अर्थात् विदारण जुदा होना, संघात अर्थात् मिलना इकट्टा होना ।