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४१२३-२५]
चतुर्थ अध्याय
:- आचार्य श्री सविधिसागर जी महाराज प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः ॥ २३ ॥ प्रैवेयकोंसे पहिलेके विमानों की कल्प संज्ञा है । अर्थात् सोलह स्वर्गोको कल्प कहते हैं । नब मैंवेयक, नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमान कल्यातीत कहलाते हैं।
लौकान्तिक देयोंका निवास
अमलोकालया लौकान्तिकाः ॥ २४ ॥ लौकान्तिक देय ब्रह्मलोक नामक पांचवें स्वर्गमें रहते हैं।
प्रश्न-यदि ब्रह्मलोकमें रहनेके कारण इनको लौकान्तिक कहते हैं तो ब्रह्मलोकनिवासी सच देवोंको लौकान्तिक कहना चाहिये।
उसर-लौकान्तिक यह यथार्थ नाम है और इसका प्रयोग ब्रह्मलोक निवासी सब देवों के लिये नहीं हो सकता । लोकका अर्थ है ब्रह्मलोक । प्रहालोकके अन्सको लोकान्त और लोकान्तमें रहनेवाले देवोंका नाम लौकान्तिक है। अथवा संसारको लोक कहते हैं। और जिनके संसारका अन्त समीप है उन देवोंको लौकान्तिक कहते है। लौकान्तिक देव स्वर्गसे मयुत होकर मनुष्य भव धारणकर मुक्त हो जाते हैं। अतः लौकान्तिक यह नाम सार्थक है।
लौकान्तिक देवोंके भेदसारस्वतादित्पबह्वथरुणगर्दतोयतुषिताव्याचाधारिष्टाश्च ॥ २५॥
सारस्वत, आदित्य, यहि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अब्याबाध और अरिष्ट ये पाठ प्रकारके लौकान्तिक देव होते हैं।
___ जो चौदह पूर्व के शाता हों वे सारस्वत कहलाते हैं। देवमाता अदितिकी सन्तानको आदित्य कहते हैं। जो वहिके समान देदीप्यमान हों वे वहि हैं । उदीयमान सूर्य के समान जिनकी कान्ति हो वे अरुण कहलाते हैं।
___शब्दको गर्द और जलको तोय कहते हैं। जिनके मुखसे शब्द जलके प्रवाहकी तरह निकलें वे गर्दतोय है। जो संतुष्ट और विषय सुखसे परान्मुख रहते है वे तुषित हैं । जिनके कामादिजनित बाधा नहीं है वे अन्यायाध है। जो अकल्याण करने वाला कार्य नहीं करते हैं वनको अरिष्ठ कहते हैं। सारस्वत आदि देवों के विमान क्रमशः ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत्य, पश्चिम, यायन और उत्तर दिशामें हैं। इनके अन्तरालमें भी दो दो देवॉक विमान हैं । सारस्वत और आदित्य के अन्तराल में अग्न्याभ और सूर्याभ, आदित्य और वहिके अन्तरालमें चन्द्राम और सस्याभ,यहि और अरुणके अन्तराल में श्रेयस्कर और क्षेमंकर,अरुण और गर्दतोयके अन्तरालमें वृषभेष्ट और कामचर,गर्दतीय और तुषितके मध्य में निर्माणरज और दिगन्तरक्षित, तुषित और अन्यावाधके मध्यमें यात्मरक्षित और सर्वरक्षित, अध्याषाध और अरिष्टके मध्यमें मरुत और बसु और अरिष्ठ और सारस्वतके मध्यमें अपूर्व और विश्व रहते हैं।
सब लौकान्तिक स्वाधीन, विषय सुखसे परान्मुख, चौदह पूर्व के बाता और देवोंसे पूज्य होते हैं । ये देव तीर्थंकरोंके तपकल्याणकमें ही आते हैं।
__ लौकान्तिक देवोंकी संख्या चार लाख सात हजार आठ सौ बीस है।