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________________ ४१० तस्यार्थवृत्ति हिन्दी-सार वैमानिक देवों में उत्कर्ष स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्या विशुद्धीन्द्रियावश्विविषयतोऽधिकाः ।। २० ।। वैमानिक देवोंमें क्रमशः ऊपर ऊपर आयु, प्रभाव-शाप और अनुग्रहकी शक्ति, सुखइन्द्रियसुखदीम-शरीर कान्ति लेश्याओंकी विशुद्धि, इन्द्रियों का विषय और विज्ञानके पियकी पाई जाती है । वैमानिक देवों में अपकर्ण - गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः ॥ २१ ॥ | ४।२०२२ वैमानिक देव गमन, शरीर, परिग्रह और अभिमानको अपेक्षा क्रमशः ऊपर ऊपर हीन हैं । ऊपर ऊपर के देशों में गमन, परिग्रह और अभिमान की होनता है । शरीरका परिमाण - सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में शरीर की ऊँचाई सात अरदिन, सानत्कुमार और माहेन्द्र में छह अरहिन, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर लान्तव और कापिड में पाँच अरत्नि, शुक्र महाशुक्र शतार और सहस्रार में चार अरत्नि, आनत और प्राणतमें साढ़े तीन अरत्नि और आरण और अच्युतमें तीन अरत्नि शरीरकी ऊँचाई है। प्रथम तीन मैवेयकोंमें ढाई अरत्नि, मध्यमैवेयक में दो अरत्नि, ऊर्ध्वं मैवेयक और नव अनुदिशमें डेढ़ अरत्नि शरीरकी मार्गदर्शक: ऊँचार्य श्रीमनारीरकी ऊँचाई केवल एक हाथ है। मुंडे हाथको अरहिन कहते हैं । वैमानिक देषों में लेश्याका वर्णन - पीतप शुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २२ ॥ युग में तो लेश्या होती है । में और शेष के विमानों में क्रमशः पीत, पद्म और शुक्ल सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में पीत लेश्या होती है। विशेष यह है कि सनत्कुमार और माहेन्द्र में मिश्र-पीत और पद्म लेश्या होती है। ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तय, कापिष्ट, शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग में पद्म लेश्या होती है। लेकिन शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार स्वर्ग में मिश्र - पद्म और शुक्ल लेश्या होती है। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्ग में और नव मैवेयकों में शुक्ल लेश्या होती है। नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में परमशुक्ल लेश्या होती है । यद्यपि सूत्र मिश्रलेश्याका ग्रहण नहीं किया है किन्तु साहचर्य से मिश्रका भी प्रद्दण कर लेना चाहिये, जैसे 'छाते वाले जा रहे हैं' ऐसा कहने पर जिनके पास छाता नहीं है। उनका भी ग्रहण हो जाता है उसी प्रकार एक लेश्या के कहने से उसके साथ मिश्रित दूसरी लेश्या का भी ग्रहण हो जाता है । सूत्रका अर्थ इस प्रकार करना चाहिये सौधर्म और ऐशान स्वर्ग में पीत लेश्या और सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में मिश्र-पीत और पद्मश्या होती है। लेकिन पद्मलेश्याकी विवक्षा न करके सानत्कुमार और माहेन्द्रस्वर्ग पीतलेश्या ही कही गई है। ब्रह्मसे लान्तष स्वर्ग पर्यन्त पद्मलेश्या और शुक्र से सहस्रार स्वर्ग पर्यन्त मिश्र पद्म और शुक्ल लेश्या होती है लेकिन शुक्र और महाशुक्र में शुक्ललेश्या at for a करके पद्म लेश्या ही कही गई है। इसी प्रकार शतार और सहस्रार स्वर्ग में पद्मलेश्याको विवक्षा न करके शुक्ललेश्या ही सूत्र में कही गई है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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