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चतुर्थ अध्याय इसके ऊपर लान्तब और कापिष्ट स्वर्ग हैं। इनके दो पटल है ब्रह्महृदय और लान्तबम पटलुकी लाशयेक निमाणी में बीस किमान हैं। और द्वितीय पटल प्रत्येक विमानश्रेणी में उन्नीस विमान है। इस पटेलको दक्षिण श्रेणीक नौवं विमान में लान्तव और उत्तर श्रेणी के नौवें विमानमें कापिष्ट इन्द्र रहने हैं।
इसके ऊपर शुक्र और महाशुक्र स्वर्ग हैं। इनमें महाशुक्र नामक एक ही पटल हैं। इस पटलके मध्य महाशुक्र नामक इन्द्रक विमान है। चारों दिशाओं में चार विमानश्रेणियो हैं। प्रत्येक बिमानश्रेणी में अठारह विमान हैं। दक्षिण अंगीके बारहवें बिमानमें शुक्र और उत्तर श्रेणी के बारहवें विमानमें महाशुक्र इन्द्र रहते हैं।
इसके ऊपर शतार और सहस्रार स्वर्ग हैं। इनमें सहस्रार नामक एक ही पटल है। चारों दिशाओंकी प्रत्येक श्रेणी में सत्रह विमान हैं। दक्षिण श्रेणी के नौ विमानम शतार और उत्तर श्रेणीके नौवें विमानमें सहस्रार इन्द्र रहते है।
इसके ऊपर आनत, प्रागत, आरण और अच्युत मर्ग हैं। इनमें छह पटल हैं। अन्तिम अच्युत पटलके मध्य में अच्युत नामक इन्द्रक विमान है. । इन्द्रक विमानसे चारों दिशाओं में चार बिमानश्रेणियाँ हैं। प्रत्येक विमानश्रेणी में ग्यारह विमान हैं। इस पटलकी दक्षिण श्रेणीके छठवें विमानमें आरण और उत्तर श्रेणी के छठये विमानमें अच्युन इन्द्र रहते हैं। ___ इस प्रकार लोकानुयोग नामक ग्रन्थ में चौदह इन्द्र बतलाये हैं। श्रुतसागर आचार्यके मतसे तो बारह ही इन्द्र होते हैं। आदिके चार और अन्तके चार इन आठ स्वर्गाके आठ इन्द्र और मध्यके आठ स्वाँक चार इन्द्र अधीन ब्रह्म, लान्तन, शुक और शतार इस प्रकार सोलह स्त्रों में बारह इन्द्र होते हैं।
विमानोंकी संख्या-सौधर्म स्वर्गमें बत्तीस लाख, एशान स्वर्ग में अट्ठाईस लाख, सानत्कुमार स्वर्ग में बारह लाख, माहेन्द्र में आठ लाख, ब्रह्म और ब्रह्मात्तरमें चालीस लाख, लान्तव और कापिष्टमें पचास हजार, शुक्र और नहाशुक्रमें चालीस हजार, शतार और सहस्त्रारमें छा हजार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्ग में सात सी विमान है। प्रथम तीन बेयकों में एक सौ ग्यारह, मध्यके तीन वेयकोंमें एक सौ सात और ऊपर के तीन मैवेयकों में एकानचे विमान हैं। नव अनुदिशमें नौ विमान हैं। सर्वार्थसिद्धि पटल में पाँच विमान हैं जिनमें मध्यवर्ती विमानका नाम सर्वार्थ सिद्धि है। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशामें क्रमसे विजय, बैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमान है।
विमानोंका रंग-सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के विमानोंका रङ्ग श्वेत, पीला, हरा, लाल और काला है । सानत्कुमार और महेन्द्र स्वगर्भ विमानोंका रङ्ग श्वेन, पीला, हरा और लाल है । अमा, ब्रह्मोत्तर, लान्तब और कापिष्ट स्वर्ग में विमानोंका रंग श्वेत,पीला और लाल है। शुक्रसे अच्युत स्वर्ग पर्यन्त विमानों का रंग श्वेत और पीला है । नत्र ग्रंबेयक, नव अनुदिश
और अनुत्तर विमानोंका रंग श्वेत ही है। सर्वार्थसिद्धि विमान परमशुक्ल हैं और इसबार विस्तार जम्बूद्वीपके समान है । अन्य चार विमानोंका विस्तार असंख्यात करोड योजन है।
उक्त वेसट पटलोंका अन्तर भी असंख्यात करोड़ याजन है।
मेरुसे ऊपर डद राजू पर्यन्त क्षेत्रमें सौधर्म और एशान स्वर्ग हैं। पुन: डेड़ राज श्माण क्षेत्रमें सानरकुमार और माहेन्द्र स्वर्ग है। ब्रह्मसे अच्यूत स्वर्ग पर्यन्त दो दो स्वाँकी ऊँचाई आधा राजू है । और वेयकसे सिद्धशिला तक एक राज़ ऊंचाई है । अवलोकमें जितने विमान है सभीमें जिनमन्दिर हैं।
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