________________
तस्त्रार्थवृत्ति हिन्दी सार
इस सूत्र में यद्यपि नव
[ ४१९ अनुदिशोंका नाम नहीं आया है लेकिन 'नवसु मैवेयकेषु' मैं नव शब्दको नव अनुदिशोंको ग्रहण करने के लिये पृथक् रखा गया है। सूत्र में सर्वार्थसिद्धिको सर्वोकृष्ट होनेके कारण सर्वार्थसिद्ध" इस प्रकार पृथक् रक्खा गया है। प्रत्येक स्वर्गका नाम उस स्वर्गके इन्द्र के नामसे पड़ा है।
L
४०८
सबसे नीचे सौधर्म और ऐशान कल्प हैं। और इनके ऊपर अच्युत स्वर्ग पर्यन्त क्रमशः दो दो कल्प हैं। आरण और अच्युत कल्पके ऊपर नव मैवेयक, नव मैत्रेयकों के ऊपर नव अनुदिश और नव अनुदिशों के ऊपर पांच अनुत्तर विमान हैं ।
एक लाख योजनांचा मेरुपर्वत है। मेरुपर्वतकी चोटी और सौधर्मस्वर्ग के इन्द्रक ऋतुविमान में एक बालमानका अन्तर है । मेरुसे ऊपर ऊर्ध्वलोक मेरुसे नीचे अधोलोक और मेरुके बराबर मध्यलोक या तिर्यक् लोक हैं ।
सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इकतीस पटल हैं। उनमें प्रथम ऋतु पटल है। ऋतु पटल के बीच में ऋतु नामक पैंतालीस लाख योजन विस्तृत इन्द्रक ( मध्यवर्ती ) विमान है । ऋतु विमान से चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ है । प्रत्येक विमानश्रेणी में बासठ विमान हैं। विदिशाओं में प्रकीरक विमान हैं । ऋतु पटलसे ऊपर प्रभा नामक अन्तिम मार्गदर्शक :- आचार्य श्री रामानोंकी संख्या कमसे एक एक कम होती गई
पटल प्रत्येक
हैं। इस प्रकार अन्तिम पलमें प्रत्येक दिशा में बत्तीस श्रेणी विमान हैं। प्रभा नामक - इकतीसवें पटलके मध्य में प्रभा नामक इन्द्रक विमान है। इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं। प्रत्येक विमान श्रेणी में बत्तीस विमान हैं। दक्षिण दिशा में जा विमानश्रेणी है उसके अठारहवें विमान में सौधर्म इन्द्रका निवास है । और उत्तर दिशा के अठाहरवें विमान में ऐशान इन्द्र रहता है। उक्त दोनों विमानोंके तीन तीन कोट हैं । बाहर के कोटमें अनीक और परिपत्र जातिके देव रहते हैं। मध्यके कोटमें त्रायशि देव रहते हैं और तीसरे कोटके भीतर इन्द्र रहता है। इस प्रकार सब स्त्रों में इन्द्रोंका निवास समझना चाहिये ।
पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशाको तीन विमान श्रेणियाँ और आग्नेय और नैर्ऋत्य दिशा से प्रकीर्णक विमान सौधर्म स्वर्गकी सीमा में हैं। उत्तर दिशाकी एक विमान श्रेणी और ईशान दिशा के प्रकीर्णक विमान ऐशान स्वर्गकी सीमा में हैं ।
इसके ऊपर सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग हैं | इनके सात पटल हैं। प्रथम अखन पटल के मध्य में अञ्जन नामक इन्द्रक विमान हैं। इन्द्र विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं। प्रत्येक श्रेणी में इकतीस विमान हैं। प्रथम पटलसे अन्तिम पटल पर्यन्त प्रत्येक पटल में प्रत्येक श्रेणीमें विमानोंकी संख्या क्रमशः एक एक कम है। सातवें पटल में इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणियाँ हैं । प्रत्येक श्रेणी में पच्चीस विमान हैं । इस पटल की दक्षिण श्रेणीके पन्द्रह विमानमें सानत्कुमार पन्द्रह विमान में माहेन्द्र इन्द्र रहते हैं ।
और उत्तर श्रेणीके
प्रथम अरिष्ट पटलके श्रेणियों हैं । प्रत्येक
इसके ऊपर ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्ग हैं। इनके चार पटल हैं। मध्य में अरिष्ट नामक इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओं में चार विमान श्रेणी में चौबीस विमान हैं। ऊपर के पटलों में श्रेणीविमानोंकी संख्या क्रमशः एक एक कम है। चौथे पटल में प्रत्येक श्रेणी में इक्कीस विमान हैं। इस पटलकी दक्षिण श्रेणी के बारहवें विमान में ब्रह्मेद्र और उत्तर श्रेणीके बारहवें विमान में ब्रह्मोत्तर इन्द्र रहते हैं ।