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________________ ३।३..] तृतीय अध्याय ४०१ किया जाता है इसलिये इनको कर्मभूमि कहते हैं। यद्यपि सम्पूर्ण जगतमें ही कर्म किया जाता है किन्तु उत्कृष्ट शुभ और अशुभ कर्मका आश्रय होनेसे इनको ही कर्मभूमि कहा गया है। स्वयम्प्रभ पर्वतसे आगे लोकके अन्त तक जो तिर्यश्च हैं उनके पाँच गुणस्थान हो सकते हैं। उनकी आयु एक पूर्वकोटिकी हैं। वहाँ के मत्स्य सानवें नरकमें ले जाने वाले पापका चन्ध करते हैं। कोई कोई थलचर जीच स्वर्ग श्रादिके हेतुभूत पुण्यका भी उपार्जन करते हैं । इसलिये आधा स्वयंभूरमण द्वीप, पूरा स्वयंभूरमण समुद्र और समुद्र के बाहर चारों कोने कर्मभूमि कहलाते है। मनुष्योंकी आयुका वर्णननृस्थिती परावरे निपल्योपमान्तर्मुहूर्त ।। ३८ ।। मनुष्योंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य और जघन्य आयु अन्तर्मुहून है। पल्यके तीन भेद हैं–व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य और अद्धा पल्य । व्यवहार पल्यसे संख्याका, उद्धार पल्यसे द्वीप समुद्रोंका और श्रद्धा पन्यग्न कमां की स्थितिका वर्णन किया जाता है। व्यबहार पल्यका स्वरूप प्रमाणाझुलसे परिमित एक प्रमाण योजन होता है । अवसर्पिणी कालके प्रथम चक्रवर्ती के अङ्गलको प्रमाणाङ्गुल कहते हैं। चौबीस प्रमाणाङ्गुलका एक हाथ होता है। चार हाथका एक इण्ड होता है। दो हजार दण्डोंकी एक प्रमाणगव्यूति होती है। बार, गम्यूतिका एक प्रमाणयोजन होता है : अश्रीन पांच सौ मानव योजनाकारक प्रमाणयाने होता कृषिमानवी जमको हासच आठ परमाणुओं का एक सरेणु होता है । आठ त्रसरेणुओंका एक रथरणु होता है। आठ रथरेणुओका एक चिकुराग्र होता है। आठ चिकुरामों की एक लिक्षा होती है। पाठ लिक्षाओंका एक सिद्धार्थ होता है । आठ सिद्धार्थोंका एक यब होता है। आठ यवांका एक अङ्गुल होता है। छह अङ्गलोंका एक पाद होता है। दो पादोंकी एक त्रितस्ति होती है । दो क्तिस्तियोंकी एक रति होती है। चार रतियांका एक दण्ड होता है। दो हजार दण्डोंकी एक गम्यूति होती है। चार गव्यूतिका एक मानवयोजन होता है । और पांच सौ मानवयोजनोंका एक प्रमाणयोजन होता है। एक प्रमाणयोजन लम्या, चौड़ा और गहरा एक गोल गड़ा हो। मात दिन तकके मेषके बच्चोंके बालों को केंचीसे कतर कर इस प्रकार टुकड़े किये जाय कि फिर दूसरा टुकड़ा न हो सके। उन सूक्ष्म यालोंके टुकड़ोंसे वह गड्ढा कूट कूटकर भर दिया जाय इस गह को व्यवहारपल्य कहते हैं । पुनः सौ वर्ष के बाद उस गडू में से एक एक टुकड़ा निकाला जावे । इस क्रमसे सम्पूर्ण रोमखण्डोंके निकलने में जितना समय लगे उतने समयको व्यवहारपल्योपम कहते हैं। पुनः असंख्यात करो वर्षों के जितने समय हो उतने समयोंसे प्रत्येक रोमखण्डोंका गुणा करे और इस प्रकार के रोमखण्डों ने फिर उस गड्डू को भर दिया जाय । इस गद्दे । का नाम उद्धारपल्य है । पुनः एक एक समय के बाद एक एक रामखण्डको निकालना चाहिए इस कमसे सम्पूर्ण रोमखण्डोंके निकलने में जितना समय लगे उतने समयको उद्धार-- पल्योपम कहते हैं । दश कोडाकोड़ी उद्धारपायोंका एक उद्धारसागर होता है ।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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