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________________ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [ ३३९ अढ़ाई उद्धार सागरों अथवा पच्चीस कोड़ाकोड़ी उजारपल्योंके जितने रोमखण्ड होते हैं उतने ही द्वीप समुद्र हैं । एक वर्ष के जितने समय होते हैं उनसे उद्धारपत्य के प्रत्येक रोमखण्डका गुणा करे और ऐसे रोमखण्डोंसे फिर वह गड्ढा भर दिया जाय तब इस गड्ढे का नाम श्रद्धा पत्य है । पुनः एक एक समय के बाद एक एक रोमखण्डको निकालने पर समस्त रोमखण्डोंके निकलने में जितने समय लगें उतने कालका नाम अद्धापल्योपम है । ४०२ देश कोड़ाकोड़ी अद्धापल्यों का एक अद्धासागर होता है। और दश कोड़ाकोड़ी अद्धासागरोंकी एक उत्सर्पिणी होती है। अवसर्पिणीका प्रमाण भी यही है । अापल्योपमसे नरक निर्यच्च देव और मनुष्योंकी कर्मको स्थिति, आयुकी स्थिति कायकी स्थिति और भवकी स्थिति गिनी जाती है । तिर्यच्चों की स्थिति तिर्यग्योनिजानाञ्च ।। ३९ ॥ मनुष्योंकी तरह तिर्थों की भी उत्कृष्ट और जयन्य श्रायु क्रमसे तीन पल्य और अन्तर्मुहूर्त हैं । इस अध्याय में नरक, द्वीप, समुद्र, कुलपर्वत, पद्मादिह, गंगादि नदी, मनुष्यों के भेद, मनुष्य तिर्यको आयु आदिका वर्णन है । तृतीय अध्याय समाप्त मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज *****
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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