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________________ पैरोकेर aum (जाना और रखना) फबना आकाशमयमग तना: ३१३६ ] तृतीय अध्याय ३९७ क्रिया ऋद्धि दो प्रकारको है-जंघाविचारणत्व और आकाशगामित्व । जंघादिचारणत्वके नौ भेद हैं १ संघाचारणत्व-भूमिसे चार अंगल ऊपर आकाश में गमम करना । २ श्रेणिचारणत्व-विद्याधरोंकी श्रेणिपर्यन्त आकाशमें गमन करना । ३ अग्निशिखाचारणत्व-अग्निकी ज्वालाके ऊपर गमन करना। ४ जलचारणत्व-जलको बिना छुए जलपर गमन करना । ५ पन्नचारणत्व-पत्तेको बिना छुए पत्तपर गमन करना । ६ फलचारणत्व-फलको बिना छुए फलपर गमन करना। ७ पुष्पचारणत्व—पुष्पको बिना छु' पुष्पपर गमन करना । ८ बीजचारणत्व-बीजको विना छुए वीजपर गमन करना । ५ तन्तुचारणत्व-तन्तुको बिना छुए तन्तुपर गमन करना । बेना आकाशमें गमन करना. सादिर्शक:- आचार्य श्री सविधिसागर जी महाराज पर्यशासनसे आकाशम गमन करना, ऊपरेको स्थित होकर आकाशमें गमन करना, अथवा सामान्यरूपसे बैठकर आकाश में गमन करना आकारागामित्व है। अणिमा आदिक भेदसे विक्रिया ऋद्धि अनेक प्रकारकी है। अणिमा-शरीरको सूक्ष्म बना लेना अथवा ( कमलनाल) में भी प्रवेश करके चक्रवर्तीके परिवारकी विभूतिको बना लेना अणिमा है। महिमा-शरीरको बड़ा बना लेना महिमा है। लघिमा-शरीरको छोटा बना लेना लघिमा है। गारमा-शरीरको भारी बना लेना गरिमा है। प्राप्ति--भूमिपर रहते हुए भी अङ्गुलिके अग्र भागसे मेरुकी शिखर, चन्द्र, सूर्य आदिको स्पर्श करनेकी शक्तिका नाम प्राप्ति ऋद्धि है। प्राकाम्य-जल में भूमिकी तरह चलना और भूमिपर जलकी तरह गमन करना, अथवा जाति, क्रिया, गुण, द्रव्य, सैन्य आदिका बनाना प्राकाम्य है। ईशित्य-जीन लोकके प्रभुल्बको पाना ईशित्व है। बशित्व- सम्पूर्ण प्राणियोंको घशमें करनेकी शक्तिका नाम वशित्व है। अप्रतीघात-पर्वत पर भी आकाशकी तरह गमन करना, अनेक रूपोका बनाना अप्रतीधान है। कामरूपित्व-मूर्त ओर अमूर्त अनेक आकारोंका अनाना कामरूपित्य है। अन्तर्धान --रूपको अदृष्ट बना लेना । तप ऋद्धिके सात भेद हैं-१ घोरतप, २ महातप, ३ उपतप, ४ डीप्ततप, ५ तातप, ६ घोरगुणाचारिता और ७ घोरपराक्रमता । घोरतप---सिंह, व्याघ्र, चीता, स्वापद आदि दुधप्राणियोंसे युक्त गिरिकन्दरा आदि स्थानों में और भयानक श्मशानों में तीन आतप, शीत आदिकी बाधा होनेपर भी थोर उपसर्गोका सहना घोरतप है। महातप-पक्ष, मास, छह मास और एक वर्पका उपवास करना महानप है। पक वर्पके उपासके उपरान्त पारणा होती है और केवलझान भी हो जाता है। इसलिये एक वर्षसे अधिक उपवास नहीं होता है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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