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तत्वार्थवृत्ति हिन्दी ससागर जी महाराज
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उपतप--पञ्चमीको अष्टमीको और चतुर्दशीको उपवास करना और दो या तीन बार आहार न मिलने पर तीन, चार अथवा पाँच उपवास करना उतप है ।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री
दीप- शरीर से बारह सूर्यों जैसी कान्तिका निकलना दीमत है ।
तप्प - तपे हुये लोइपिण्ड पर गिरी हुई जलकी बूँदकी तरह आहार ग्रहण करते हो आहारका पता न लगना अर्थात् श्राहारका पच जाना तप्ततप हैं ।
घरगुणब्रह्म चारिता सिंह, व्याघ्र आदि क्रूर प्राणियोंसे सेवित होना घोरगुणब्रह्मचारिता है।
घोर पराक्रमता--मुनियोंको देखकर भृत, प्रेत, राक्षस, शाकिनी आदिका डर जाना धोरपराक्रमता है ।
तीन भेद हैं- मनोबल, वचनबल और कायबल ।
मनोबल - अन्तर्मुहूर्त में सम्पूर्ण श्रुतको चिन्तन करनेकी सामर्थ्यका नाम मनोबल है । बचनबल-1 -- अन्तर्मुहूर्त में सम्पूर्ण श्रुतको पाठ करने की शक्तिका नाम वचनबल है। कायवल—एक मास, चार मास, छह मास और एक वर्ष तक भी कायोत्सर्ग करनेकी शक्ति होना अथवा अली अग्रभागसे तीनों लोकोंको उठाकर दूसरी जगह रखनेकी सामर्थ्यका होना कायवल है ।
ऋद्धिप्रकारकी है। जिन मुनियोंकी निम्न आठों बातोंके द्वारा प्राणियों के रोग नष्ट हो जाते हैं वे मुनिं औषधऋद्धि के धारी होते हैं ।
१ बिट् (मल) लेपन, २ मलका एकदेश छूना, ३ अपक्व आहारका स्पर्श, ४ सम्पूर्ण अशोक मला स्पर्श, ५ निष्ठीवनका स्पर्श, ६ दन्त, केश, नख, मूत्र आदिका स्पर्श ७ कृपादृष्टि अवलोकन ओर ८ कृपासे दाँतों का दिखाना ।
रस ऋद्धिके छइ भेव हैं–१ आस्यविष- किसी दृष्टिगत प्राणीको 'मर जाओ' ऐसा कहने पर उस प्राणीका तत्क्षण ही मरण हो जाय — इस प्रकार की सामर्थ्यका नाम आस्यविप अथवा वाग्विष है |
२- किसी क्रुद्ध मुनिके द्वारा किसी प्राणीके देखे जानेपर उस प्राणीका उसी समय मरण हो जाय इस प्रकारकी सामर्थ्य का नाम दृष्टिविष है।
३ ओरस्रावी -- नीरस भोजन भी जिन मुनियोंके हाथ में थानेपर क्षीरके समान स्वादयुक्त हो जाता है, अथवा जिनके वचन क्षीरके समान संतोष देनेवाले होते हैं वे क्षीरसावी कहलाते हैं ।
४ मध्यास्रावी --- नीरस भोजन भी जिन मुनियोंके हाथ में आनेपर मधुके स्वादको देनेवाला हो जाता है और जिनके वचन श्रोताओंको मधुके समान लगते हैं वे मुनि मात्रायी है ।
५ सर्पिशाबी -- नीरस भोजन भी जिनके हाथमें आनेपर घृतके स्वादयुक्त हो जाता है और जिनके वचन श्रोताओं को घृतके स्वाद जैसे लगते हैं वे मुनि सर्पिरास्रावी हैं।
६ अमृतास्रावो -- जिनके हस्तगत भोजन अमृत के समान हो जाता है और जिनके चचन अमृत जैसे लगते हैं वे मुनि अमृतास्रावी हैं ।
क्षेत्र ऋद्धि के दो भेद हैं। अक्षोणमहानसऋद्धि और अक्षीणआलयऋद्धि ।
किसी मुनिको किसी घर में भोजन करनेपर उस घर में चक्रवर्ती के परिवारको भोजन करनेपर भी अन्न कमी न होनेकी सामर्थ्यका नाम अक्षीण महानस ऋद्धि है।