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________________ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार पुष्करद्वीपका वर्णन पुष्करार्धे च ।। ३४ ।। पुष्कर दीपके अद्धभाग में भी सब रचना जम्बूद्वीपसे दूनी है। धातकीखण्ड द्वीपके समान पुष्कराधमें भी दक्षिणसे उत्तर तक लम्बे और आठ लाख योजन बिस्तृत दो इवाकार पर्वत हैं । इस कारण पुष्कराद्धके दो भाग हो गये है। दोनों भागोंमें दो मेरु पर्वत हैं एक पूर्वमेरु और दूसरा अपरमेरु । प्रत्येक मेरुसम्बम्धी भरत आदि सात क्षेत्र और हिमवान आदि छह पर्वत हैं । पुष्कराध द्वीपम सारी रचना धातकीखण्ड द्वीपके समान ही है। विशेषता यह है कि पुष्कराधके हिमवान् आदि पर्वतोंका विस्तार धातकीखण्ड के हिमवान आदि पर्वतोंके विस्तार से दूना हे । पुष्कर बीपके मश्यमें गोलाकार मानुपांतर पवंत है अतः इस पर्वतसे विभक्त होने के कारण इसका नाम पुकरा पड़ा । आत्र पुच कर द्वीपमें ही मनुष्य हैं अतः पुष्कराद्ध का ही वर्णन नहीं किया गया है।। मनुष्य क्षेत्रको सोमा--- प्रामादितिराभिचाई भी विद्यासागर जी महाराज भानुपाचर पर्वतक पहिले ही मनुष्य होते हैं, आगे नहीं । मानुपोत्तर पर्वतके बाहर विद्याधर श्रार ऋद्धिप्राप्त मुनि भी नहीं जाते हैं। भनुन्य क्षेत्रके त्रस भी बाहर नहीं जाते हैं। पुस्कराईको नदियां भी मानुपात्तर के बाहर नहीं रहती हैं। जब मनुध्य क्षेत्रके बाहर मृत काई तिर्यञ्च या दब मनुष्यक्षेत्रमें आता है तो मनुष्यगत्यानुसूचीं नाम कर्म का उदय होनेस भानुपान्तरके बाहर भी उसको उपचारसे मनुष्य कह सकते है । दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण समुद्रातके समय भी मानुषोत्तरसे बाहर मनुष्य जाता है। मनुष्यों के भेद आर्या म्लेच्छाश्च ।। ३६ ॥ मनुप्योंकि दो भेद है-आर्य और म्लेच्छ । जा गुणोंग सहित हो अथवा गुणवान लोग जिनकी सेवा करें उन्हें आर्य कहते हैं। जा निलतापूर्वक चाहे जो कुछ बोलते हैं, वे म्लेच्छ हैं। पायों के दो भेद है--ऋद्धिप्राप्त आर्य और ऋद्धिरहित आर्य । ऋद्धिप्राप्त आयकि ऋद्धयोंके भदस आठ भेद है । आठ ऋद्धियों के नाम-बुद्धि, क्रिया, बिक्रिया, तप, वल, औषध, रस और शेन्न। बुद्धि ऋद्धिप्राप्त अायों के अठारह भेद हैं । ५ अवधिज्ञानी २ मनःपर्ययज्ञानी ३ केवलमानी, ४ बीजबुद्धिवाल, ५ कोष्ट बुद्धिवाले, ६ सम्मिन्ननोत्री, ७ पदानुसारी, ८ दूरसं स्पश करने में समर्थ, ५. दूरसे रसास्वाद करने में समर्थ, १० दूरसे गंध ग्रहण करने में समथ, १५ दूर सुनने में समर्थ, १२ दूरसे देखने में समर्थ, १३ दश पूर्व के ज्ञाता, १४ चौदह खूर्व के ज्ञाता, २५ आठ महा निमित्तोंके जाननेवाले, १६ प्रत्येक बुद्ध, १७ वाद विवाद करने वाले और १८ प्रज्ञाश्रमण | एक बीजाक्षरके ज्ञानसे समस्त शास्त्रका ज्ञान हो जानेको बीजवुद्धि कहते हैं । धान्यागारम संगृहीत विविध धान्योंको तरह जिस युद्धिमें सुने हुये वर्ण आदिका बहुत कालतक धिनाश नहीं होता है वह कोष्ठबुद्धि है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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