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________________ ३९५ ३३३] तृतीय अध्याय बड़वालोंकी संख्या एक हजार आठ है। इन बड़वानलोंके अन्तराल में भी छोटे छोटे बहुत से बड़वाल हैं । प्रत्येक बड़वानलके तीन भाग हैं। नीचे के भागमें वायु मध्य भागमें बायु और जल, और ऊपर के भागमें केवल जल रहता है। जब वायु धीरे धीरे नीचे के भागसे ऊपरके भाग में चढ़ती है तो मध्यम भागका जल वायु प्रेरित होनेक कारण ऊपरको चढ़ता है। इस प्रकार बड़वानलका जल समुद्र में मिलने के कारण समुद्रका जल तट के ऊपर श्रा जाता है । पुनः जब चायु धीरे धीरे नीचेको चली जाती है तब समुद्रका जल भी बद जाता है । लवण समुद्र में ही वेला (तट) है अन्य समुद्रों में नहीं । अन्य समुद्रों में बड़वानल भी नहीं हैं क्योंकि सब समुद्र एक हजार योजन गहरे हैं। लवण समुद्रका ही जल उन्नत है अन्य समुद्रोंका जल सम ( बराबर ) है । लवणसमुद्रके जलका स्वाद नमक के समान, वारुणी समुद्रके जलका स्वाद मंदिरा के समान, श्रीरसमुद्र के जलका स्वाद दूध के समान, घृतो समुद्र जलका स्वाद घृतके समान, कालोद, पुष्कर और स्वयम्भूरमण समुद्र के जलका स्वाद जल के समान और अन्य समुद्रजलका स्वाद इक्षुरसके समान है । लवण, काळोद और स्वयं भूरमणका की जवानी आई। सत्मसमुद्र महाराज नहीं । लवण समुद्र में नदियोंके प्रवेश द्वारोंमें महस्योंका शरीर नौ योजन और समुद्र के मध्य में नदियों के प्रवेश द्वारों में मत्स्योंके शरीरका विस्तार अठारह योजन और समुद्र के मध्य में छत्तीस योजन है। स्वयंभूरमण समुद्रके तटपर रहनेवाली मछलियोंके शरीरका विस्तार पाँच सौ योजन और समुद्रके मध्य में एक हजार योजन हैं। लवण, कालोद और पुष्करवर समुद्र में ही नदियों के प्रवेशद्वार हैं, अन्य समुद्रोंमें नहीं हैं । अन्य समुद्रों की वेदियाँ भित्ति के समान हैं । धातकीखण्ड द्वीपका वर्णन --- द्विर्घातकीखण्डे || ३३ ॥ धातकीखण्ड द्वीप में क्षेत्र, पर्वत आदि की संख्या आदि समस्त बातें जम्बूद्वीप से दूनी दूती हैं। arast aus atest दक्षिण दिशा में दक्षिण से उत्तर तक लम्बा इष्वाकार नामक पर्वत है जो लवण और कालोद समुद्रकी वेदियों को स्पर्श करता है। और उत्तर दिशामें भी इसी तरह का दूसरा इष्वाकार नामक पर्वत है। प्रत्येक पर्वत चार लाख योजन लम्बे हैं । दोनों scareer पर्वतसे धातकीखण्डके दो भाग हो गये हैं, एक पूर्व घातकीखण्ड और दूसरा अपर घातकखण्ड । प्रत्येक भाग के मध्य में एक एक मेरु है । पूर्वदिशा में पूर्वमेरु और पश्चिम दिशा में अपरमेरु है । प्रत्येक मेरु सम्बन्धी भरत आदि सातक्षेत्र और हिमवान् आदि छह पर्वत हैं । इस प्रकार घातकीखण्ड में क्षेत्र और पर्वतों की संख्या जम्बूद्वीपसे दूनी है । जम् द्वीपमें हिमवान् आदि पर्वतों का जो विस्तार है उसमें दूना विस्तार भ्रातकीखण्ड के हिमवान आदि पर्वत है लेकिन ऊँचाई और गहराई जम्बूदीपके समान ही है। इसी तरह विजयार्द्ध पर्वत और वृत्तवेाव्य पर्वतोंको संख्या भी जम्बूद्वीपक समान है । धातकीखण्ड में हिमवान् आदि पर्वत चक्के आरे के समान हैं और क्षेत्र आरोंके छिद्रके आकार के हैं ।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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