SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार हैमवत श्रादि क्षेत्रोंमें आयुका वर्णनएकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्पकदैवकुरयकाः ।। २९ ।। हैमवत, हरिक्षेत्र तथा देबकुरु में उत्पन्न होनेवाले प्राणियोंकी आयु क्रमशः एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्यकी है। शरीरकी ऊंचाई क्रमशः दो हजार धनुष, चार हजार धनुष और छह हजार धनुष है । भोजन क्रमशः एक दिन बाद, दो दिन बाद तथा नीन दिन बाद करते हैं। शरीरका रंग क्रमसे नील कमल के समान, कुन्द पुष्पके समान और कांचन वर्ण होता है। उत्तरके क्षेत्रों में आयुकी व्यवस्था तथोत्तराः ॥ ३०॥ उत्तरके क्षेत्रोंक निवासियोंकी प्रायु दक्षिण क्षेत्रोंक वासयाकर समीमहादान । अर्थात् हैरण्यवत,रम्यक क्षेत्र तथा उत्तर कुरुमें उत्पन्न होनेवाले प्राणियोंकी आयु क्रमशः एक, दो और तीन पल्यकी है। विदह क्षेत्रमें श्रायुकी व्यवस्था विदेहेषु संख्येयकालाः ॥ ३१ ॥ विदेह क्षेत्र में संख्यातवर्ष की आयु होती है। प्रत्येक मेरुसम्बन्धी पाँच पूर्वविदह और पांच अपर वितह होते हैं। इन दोनों विदहोंका महाविदह कहते हैं । विदह में उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटि घपं और जघन्य आयु अन्तमुहूर्त है। विदेहमें सदा टुपमसुपमा काल रहता है। मनुष्यों के शरीरकी ऊँचाई पाँच सो धनुप है। वहाँ के मनुष्य प्रतिदिन भोजन करते हैं। सत्तर लाख करोड़ और छप्पन हजार करोड़ वर्षोंकि ममूहका नाम एक पूर्व है । अर्थान् ७२५६००००००००० वर्षका पूर्व होता है। भरत क्षेत्रका दूसरो नरहसे विस्तारवर्णनभरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥ ३२॥ भरतक्षेत्रका विस्तार जम्बुद्धीपर्फे एक सौ नब्वेश भाग है। अर्थात् जम्बूद्वीपके एक सौ नव्वे भाग करने पर एक भाग भरत क्षेत्रका विस्तार है। जम्बूद्वीपके अन्त में एक वेदी है उसका विस्तार जम्बूद्वीपके विस्तार में ही सम्मिलित है। इसी प्रकार सभी द्वीपोंकी वेदियोंका विस्तार द्वीपों के विस्तार के अन्तर्गत ही है । लवण समुद्रके मध्यमें चारों दिशाओं में पाताल नाम वाले अलजलाकार चार बड़वानल हैं जो एक लाख योजन गहरे, मध्यमें एक लाख योजन विस्तारयुक्त और मुत्र तथा मूल में दश हजार योजनविस्तारवाले हैं। चारों विदिशाओंमें चार क्षद्र बड़वानल भी हैं। जिनकी गहराई दश हजार योजन, मध्यमें विस्तार दश हजार योजन और मुख तथा मूलमें विस्तार एक हजार योजन है । इन आठ बड़वानलोंके पाठ अन्तरालों में से प्रत्येक अन्तरालमें पंक्ति में स्थित एक सौ पच्चीस बास्य हैं जिनकी गहराई एक हजार योजन, मध्य में विस्तार एक हजार योजन और मुख तथा मूलमें पाँच सौ योजन विस्तार है। इस प्रकार
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy