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३५२ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी सार
[३२७ सिंह, व्याघ्र आदिके भयको निवारण करने के लिये लाठी आदि रस्त्रना सिखाना है। पाँचवे कुलकरकी आयु पल्यके लाख भागोंमें से एक भाग प्रमाण है । वह कल्पवृक्षोंकी सीमाको वचन द्वारा नियत करता है क्योंकि उसके कालमें कल्पवृक्ष कम हो जाते हैं और फल भी कम लगते हैं। छठवें कुलकरकी आयु पल्यकें दश लाख भागों में से एक भाग प्रमाण है । वह गुल्म आदि चिन्होंसे कल्पवृक्षोंकी सीमाको नियत करता है क्योंकि उसके कालमें कल्पवृक्ष बहुत कम रह जाते हैं और फल भी अत्यल्प लगते हैं। सातवें कुलकरकी आयु पल्यके करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है । वह शूरताके उपकरणोंका उपदेश और हाथी आदिपर सवारी करना सिखाता है। आठवें कुलकरकी आयु पल्यके दश करोड़ भागोंमें से एक भाग प्रमाण है । वह सन्तानके दर्शनसे उत्पन्न भयको दूर करता है । नचम कुलकरकी आयु पल्यके सौ करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है। वह सन्तानको आशो
द दना सिखाता है । दशम कुलकरकी आयु पल्याक हजार करोड़ भागों में से एक भाग प्रमाण है। वह बालकोंके रोने पर चन्द्रमा आदि के दर्शन तथा अन्य क्रीड़ाके उपाय बतलाता है । म्यारहवें कुलकरकी आयु पसाबकिदर्शमार-कटोवालामा रसुवाहासापरखापणहाराज उसके काल में युगल ( पुरुष और स्त्री) अपनी सन्तानके साथ कुछ दिन तक जीवित रहता है । बारहवें कुलकर की आयु पत्यक लाख करोड़ भागोंमें से एक भाग प्रमाण है। वह जल को पार करने के लिये नौका आदि की रचना कराना सिखाता तथा पवन आदिपर चढ़ने और उतरने के लिये सीढ़ो आदिको बनवानेका उपाय बताता है। उसके काल में युगल अपनी सन्तानके साथ बहुत काल तक जीवित रहता है। मेघोंके अल्प होने के कारण वर्षा भी अल्प होती है। इस कारणसे छोटी छोटी नदियों और छोटे छोटे पर्वत भी हो जाते हैं। तेरहवें कुलकरकी आयु पल्यके दश लाख करोड़ भार्गों में से एक भाग प्रमाण है । वह जरायु (गभजन्मसे उत्पन्न प्राणियों के जरायु होती है) आदिके मलको दूर करना सिखाता है । चौदहवें कुलकरकी आयु पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण है । वह सन्तानके नाभिनाल को काटना सिखाता है। उसके काल में प्रचुर मेघ अधिक वर्षा करते हैं । बिना वोये धान्य पैदा होता है। वह धान्यको खानका उपाय तथा अभक्ष्य औपधि और अभक्ष्य वृक्षोंका त्याग बतलाता है । पन्द्रहबा कुलकर तीर्थकर होता है । सोलहवां कुलकर उसका पुत्र चक्रवर्ती होता है । इन दोनोको आयु चौरासी लाख पूर्वकी होती है।
सुपमपमा नामक चौथे कालके आदिमें मनुष्य विदह क्षेत्रक मनुष्यों के समान पाँच सौ धनुष ऊँचे होते हैं। इस कालमें तेईस तीर्थकर उत्पन्न होते हैं और मुक्त भी होते हैं । ग्यारह चक्रवर्ती, नव वलभद्र,नव वासुदेव, नव प्रति वासुदेव और ग्यारह रुद्र भी इस कालमें उत्पन्न होते हैं। वासुदेवों के कालमें नव नारद भी उत्पन्न होते हैं तथा य कलहप्रिय होने के कारण नरक जाते हैं। चौथे कालके अन्त में मनुष्योंकी आयु एक सौ बीस वर्ष
और शरीरकी ऊँचाई सात हाथ रह जाती है। दुःपमा नामक पञ्चम कालके आदि में मनुष्योंकी आयु एक सौ बीस वर्ष और शरीर की ऊँचाई सात हाथ होती है। और अन्तमें आय बीस वर्ष और शरीरकी ऊँचाई साढ़े तीन हाथ रह जाती है.
अतिटुःपमा नामक छठवें कालके आदिमें मनुष्यों की आयु बीस वर्ष होती है और अन्तम आयु सोलह वर्ष और शरीरकी ऊँचाई एक हाथ रह जाती है। छठवें कालके अन्नमें प्रलय काल आता है। प्रलय कालमे सरस, विरम, तीक्ष्ण, रूक्ष, उष्ण, विष और क्षारमेघ क्रमसे सात सात दिन बरसते हैं । सम्पूर्ण आर्य खण्डमें प्रलय होने पर मनुष्यांके बहत्तर युगल शेष रह जाते हैं। चित्राभूमि निकल पाती है। बराबर हो जाती है। इस