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तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[ ३१२३-२५ जाती है। अर्थात गङ्गा और सिन्धुम से सिन्धु पश्चिम समुद्रको जाती है । यही क्रम आगे भी है।
नदियों का परिवारचतुर्दशनदीसहस्परिपृता गङ्गासिन्ध्यादयो नद्यः ॥ २३ ॥ गङ्गा सिन्धु आदि नदियाँ चौदह हजार परिवार नदियोंसे सहित है।
यद्यपि बीसवे सूत्र गत 'सरितस्तन्मध्यगा: इस वाक्यमें आये हुये सरित् शब्दसे इस सत्र में भी नदीका सम्बन्ध हो जाता क्योंकि यह नदियोंका प्रकरण है फिर भी इस सूत्रमें 'नयः' शब्दका ग्रहाय यह सूचित करता है कि आगे आगेकी युगल नदियों के परिवारनदियोंकी संरया पूर्व पूर्वकी संख्यासे दूनी दूनी है।
यदि 'चतुर्दशनदीसहपरिवृता नमः' इतना ही सूत्र बनाते तो 'अनन्तरस्य विधिर्वा प्रतिषेधो घा' इस नियमके अनुसार 'शेपास्त्वपरगाः' इस सूत्र में कथित पश्चिम समुद्रको जानेवाली नदियोंका ही यहां ग्रहण होता। और 'चतुर्दशनदीसहस्रपरिबृता गङ्गादयो नद्यः'
सा सूत्र करनेपर पूर्व समुद्रको जानबाली नदियोंका ही ग्रहण होता । अतः सब नदियोंको प्रहण करने के लिये गङ्गासिन्ध्यादयो' वाक्य सूत्र में आवश्यक है।
गगा और मिश्र नदियोंकी परिवार नदिम जौवह सौदह हजार रोहित और रोहितास्या नदियोंकी परिवार नदियों अट्ठाईस अट्ठाईस हैजार, हरित और हरिकान्ता नदियोंकी परिवार नदियाँ छप्पन छप्पन हजार, सीता और सीतोदा नदियों में प्रत्येकको परिवार नदियाँ एक लाख बारह हजार हैं । नारी और नरकान्ता, सुत्रर्ण कूला और रूप्यफूला, रक्ता और रक्तोदा नदियोंके परिवार नदियोंकी संख्या क्रमसे हरित और हरिकान्ता, रोहित और रोहितास्या, गंगा और सिन्धु नदियों के परिवार नदियों की संख्या के समान है।
भोगभूमिकी नदियों में बस जीष नहीं होते हैं। जम्बूद्वीप सम्बन्धी मूल नदियाँ अठार है। इनकी परिवार नदियों की संख्या पन्द्रह लाख बारह हजार है। जम्बूद्वीपमें विभंग नदियाँ बारह हैं।
इस प्रकार पश्चमेरु सम्बन्धी मूल नदियाँ तीन सौ नवे हैं और इनकी परियार नदियोंकी संख्या पचत्तर लाख साठ हजार है। विभंग नदियों की संख्या साठ है।
:-आचाया सावहिासागर जी महाराज
भरत क्षेत्रका विस्तार
भरतः षड्विंशतिपञ्चयोजनशत विस्तारः षट्चैकोनविंशतिभागाः योजनस्य ॥२४॥
भरत क्षेत्रका विस्तार पाँच सौ सच्चीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागों में से छह भाग है । ५२६, योजन, विस्तार है।
आगेके पर्वत और क्षेत्रोंका विस्तार--- तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षी विदेहान्ताः ॥ २५ ॥
आगे आनेके पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार भरत क्षेत्र के विस्तारसे दूना दूना है। लकिन यह क्रम विदह क्षेत्र पर्यन्त ही है। विदेह क्षेत्रसे उत्तरके पर्वतों और क्षेत्रोंका विस्तार विदह क्षेत्रके विस्तारसे आधा आधा होता गया है।
भरत क्षेत्र के विस्तारसे हिमवान् पर्वतका विस्तार दूना है । हिमवान पर्वत के विस्तार