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________________ ३।२२] तृतीय अध्याय द्वारसे रोहित नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिल जाती है । रोहित और रोहितास्या नदी हैमवत क्षेत्र में बहती हैं। महापद्महदके उत्तरतोरण - द्वारसे हरिकान्ता नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमि में बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। निषध पर्वतके ऊपर स्थित निगिन्छ हृदके दक्षिण तोरणद्वारसे हरित नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमिमें बहती हुई पूर्व समुद्रमें मिलती है। हरित और हरिकान्ता नदियाँ हरिक्षेत्र में बहती हैं। तिगि हदके उत्तर तोरणद्वारसे सीतोदा नदी निकली है जो अपर विदेह और उत्तम भोगभूमिमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती हैं। नील पर्वतपर स्थित केसरी हदके दक्षिण तोरणद्वारसे सीता नदी निकली हैं जो उत्तम भोगभूमि और पूर्व विदेह में बहती हुई पूर्व समुद्री मिल जाती हैं। सीना और सीतोदा नदियाँ विदेह क्षेत्रमें वाहती है। केसरी हदके उत्तर तोरणद्वारसे नरकान्ता नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमिम बहती हुई पश्चिम समुदमें मिल जाती है। रुक्मि पर्यतपर स्थित महापुण्डरीक हदके दक्षिण तोरणद्वारसे नारी नदी निकली है जो मध्यम भोगभूमि में बहती हुई पूर्व समुद्रम मिल जाती है । नारी और नरकान्ता नही रम्यक क्षेत्रमें बहती है। महापुण्डरीक हदके उत्तर तोरणवारसे रुप्यकूला नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिलयागीदे। शिधापासीधामकाजी महाराज हद के दक्षिण तोरणद्वारसे सुवर्णकला नदी निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिलती है । सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदी हैरण्यवत क्षेत्रमें बहती हैं। पुण्डरीक हदके पश्चिम तोरणद्वारसे रक्तोदा नदी निकली है जो विजयार्द्ध पर्वतको भेदकर म्लेच्छ खण्ड में बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। पुण्डरीक हृदके पूर्व तोरणद्वारसे रक्ता नदी निकली है जो विजया पर्वतको भेदकर म्लेपछ खण्डमें बहती हुई पूर्व समुद्र में मिलती है । रक्ता और रक्तोदा नदी ऐरावत क्षेत्रमें बहती है।। दयकुरुके मध्यमें सीतोदा नदी सम्बन्धी पाँच ह्रद हैं। प्रत्येक हृदके पूर्व और पश्चिम तटोपर पाँच पाँच सिद्धकृट नामक क्षद्र पर्वत हैं। इस प्रकार पाँचों हदोंक तयॊपर पचास शुद्र पर्वत है। ये पर्वत पचास योजन लम्बो, पच्चीस योजन चौड़े और सेंतीस योजन ऊँचे हैं। प्रत्येक पर्चतके ऊपर अष्टप्रातिहार्यसंयुक्त, रत्न, सुबा और चाँदीसे निर्मित. पल्यासनारूढ़ और पूर्वाभिमुख एक एक जिनप्रतिमा है। अपर विदेहमें भी सीतोदा नदी सम्बन्धी पाँच हद है। इन हदोंके दक्षिण और बस्तर तटोपर पाँच पांच सिद्धट नामके क्षुद्र पर्वत हैं । अन्य वर्णन पूर्ववत् है । इसी प्रकार उत्तर कुरुमें सीता नदी सम्बन्धी पाँच हद हैं । इन हृदोंके पूर्व और पश्चिम तटॉपर पूर्ववत् पचास सिद्धकूट पर्वत हैं। पूर्व विदेहमें भी सीता नदी सम्बन्धी पाँच हद है । इन हदोंके दक्षिण और उत्तर तटोपर पचास सिद्धक्रूट पर्वत है। इस प्रकार जम्यूबीपके मेरु सम्बन्धी सिद्धकूट दो सौ हैं और पांचों मेरु सम्बन्धी सिद्धकूटों की संख्या एक हजार है। शेषास्त्वपरगाः ॥ २२॥ पूर्व सूत्र में कही गई नदियोंसे शेष बची हुई नदियाँ पश्चिम समुद्रको
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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