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तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार अन्य सरोवरों के विस्तार आदिका वर्णन ...
तद्विगुणद्विगुणा ह्रदाः पुष्कराणि च ॥ १८ ॥ श्रागे के सरोवरों और कमरोंका विस्तार प्रथम सरोघर और उसके कमलके विस्तारसे दूना दूना है । अर्थात् महापद्म दो हजार योजन लम्बा, एक हजार योजन चौड़ा और बीस योजन गहरा है। इसके कालका विस्तार दो योजन है। इसी प्रकार महापद्मके विस्तारस दूना विस्तार तिगिन्छ हदका है । केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक हदोका विस्तार माजनिगियामहर्षि विविएट विस्तारमान है। इनके कमलोंका विस्तार भी तिगिल्छ आदिके कमलोंके विस्तार के समान है।
कमलों में रहनेवाली देवियों के नाम-- तभिवासिन्यो देव्यः श्रीहीतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्यः पल्योपमस्थितयः
ससामानिकपरिषत्काः ॥ १९॥ उन पद्म आदि सरोवरोंक कमलों पर क्रमसे श्री, हो, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियाँ सामानिक और परिपद जातिके देवों के साथ निवास करती हैं। वियों को आयु एक पल्प है।
छहों कमलोंकी कर्णिका के मध्यमें एक कोस लम्चे, अर्द्धकोस चौड़े और कुछ कम एक कोस ऊँचे इन देवियों के प्रासाद हैं जो अपनी कान्तिसे शरदऋतुके निर्मल चन्द्रमा को प्रभाको भी तिरस्कृत करते हैं । कमलोंके परिवार कमलों पर सामानिक और परिषद देव रहते हैं। श्री, ही और धृति देवियों अपने अपने परिवार सहित सौधर्म इन्द्रकी सेवा में तत्पर रहती हैं और कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवियाँ ऐशान इन्द्रकी सेवामें तत्पर रहती हैं।
नदियोंका वर्णनगङ्गासिन्धुरोहिद्रोहितास्याद्दरिद्वारिकान्तासीतासीतोदामारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तार
क्तादाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥ २० ॥ - गङ्गा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्था, हरिन्, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा ये चौदह नदियाँ भरत आदि सात क्षेत्रोंमें बहती हैं।
नदियों के बहनेका क्रम
द्वयोर्द्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥ २१ ॥ दो दो नदियों में से पहिली पहिली नदी पूर्व समुद्र में जाती है । अर्थात् गङ्गा-सिन्धुमें गहा नदी पूर्व समुद्रको जाती है, रोहित-रोहितस्यामें रोहित नदी पूर्व समुद्रको जाती है। यही क्रम आगे भी है।
हिमवान् पर्वतके ऊपर जो पद्म हद है उसके पूर्व तोरणद्वारसे गङ्गा नदी निकली है जो विजयार्द्ध पर्वतको भेदकर म्लेच्छ खण्डमें यहती हुई पूर्व समुद्र में मिल जाती है । पद्धहृदके पश्चिम तोरणद्वारसे सिन्धु नदी निकली है जो विजयाई पर्वत को भेदकर म्लेच्छ खण्डमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। ये दोनों नदियाँ भरत क्षेत्रमें बहती है। हिमवान् पर्वतके ऊपर स्थित पद्महदके उत्तर तोरणद्वारसे रोहितास्या नही निकली है जो जघन्य भोगभूमिमें बहती हुई पश्चिम समुद्र में मिल जाती है। महापग्रहदके दक्षिण तोरण