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३।१२-१७]
मृतीय अध्याय हिमवान् पर्वत है । हैमवत और हरिक्षेत्रको सीमापर दो सौ योजन ऊँचा और पचास योजन भूमिगत महाहिमघान् पर्वत है। हरि और थिदेह क्षेत्रकी सीमापर चार सौ योजन ऊँचा और सी योजन भूमिगत निषध पर्वत है। विदेह और रम्यक क्षेत्रकी सीमापर 'चार सौ योजन ऊँचा और एक सौ योजन भूमिगत नील पर्वत है । रम्यक और हैरण्यवत क्षेत्रकी सीमापर दो सौ योजन ऊँचा और पचास योजन भूमिगत रुक्मि पर्वत है। हरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रकी सीमापर सौ योजन ऊँचा और पच्चीस योजन भूमिगत शिखरी पर्वत है।
पर्वतों के रंगका वर्णनहेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥ १२ ॥ उन पर्वतोंका रंग सोना, चाँदी, सोना, बैडूर्यमणि, चाँदी और सोनेके समान है।
हिमवान् पर्वतका वर्ण सोने के समान अथवा चीनके वस्त्रके समान पीला है । महाहिमवानका रङ्ग चाँदीके समान सफेद है । निषध पर्वतका रंग तपे हुये सोने के समान लाल हैं। नील पर्वतका वर्ण रेडूर्यमणिके समान नील है । रुक्मी पर्वतका वर्ण चाँदीके समान सफेद है । शिखरी पर्वतका रंग सोने के समान पीला है।
पर्वतोंका आकारमणिविचित्रपाो उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ।। १३ ॥ धन पर्वतोंके तट नाना प्रकारफे मणियोंसे शोभायमान हैं जो देव, विशधर और चारण ऋषियों के चित्तको भी चमत्कृत कर देते हैं । पर्वतोंका विस्तार ऊपर, नीचे और मध्यमें समान है।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
पर्वतोपर स्थित सरोघरोंके नाम-- पामहापमतिगिछकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हदास्तेषामुपरि ।। १४ ॥
हिमवान् आदि पर्वतोंके ऊपर क्रमसे पश, महापद्म, तिगिन्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये छह सरोवर हैं।
__प्रथम सरोवरकी लम्बाई चौड़ाईप्रथमो योजनसहलायामस्तदर्द्धविष्कम्भो हृदः ॥ १५ ॥ हिमयान् पर्वतके ऊपर स्थित प्रथम सरोवर एक हजार यो जन लम्बा और पांच सौ योजन चौड़ा है । इसका तल भाग यन्त्रमय और तद नाना रत्नमय है।
प्रथम सरोवरकी महराई
दशयोजनावगाहः ।। १६ ।। पद्य सरोबर दश योजन गहरा है।
तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥ १७ ॥ पन सरोवर के मध्य में एक योजन विस्तारवाला कमल है। एक कोस लम्चे उसके पत्तं हैं और दो कोस विस्तारयुक्त कणिका है । कर्णिकाके मध्यमें एक कोस प्रमाण विस्तृत श्री देवीका प्रासाद है । यह कमल जलसे दो कोस ऊपर है । पत्र और कर्णिकाके विस्तार सहित कमलका विस्तार एक योजन होता है।