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३८२ तत्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार
[३।७-८ सातवें नरकये निकला हुआ जीब तिर्यञ्च ही होता है और पुनः नरकमें जाता है । छठवें नरकसे निकला हुआ जीव मनुष्य हो सकता है और सम्यग्दर्शनको भी प्राप्त कर सकता है लेकिन देशनती नहीं हो सकता। पञ्चम नरकसे निकला हुआ जीव देशव्रती हो सकता है लेकिन महाव्रती नहीं । चोथे नरकसे निकला हुआ जीव मोक्ष भी प्राप्त
कर सकता है । प्रथम, द्वितीय और तृतीय नरकासे निकला हुआ जाय तोर्थकर भी हो मार्गवसका है. आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
मध्यलोकका वर्णनजम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ।। ७ ।। मध्यलोक में उत्तम नामवाल जम्बूद्वीप आदि और लक्षणसमुद्र आद' असं यात द्वीप समुद्र हैं।
१ जम्बूद्वीप, १ लवणसमुद्र, २ धातकी खण्डजीप, २ कालोद समुद्र.३ पुष्करबरद्वीप, ३ पुकरवर समुद्र, वारुणीवरद्वीप धारणीवर समुद्र, ५ क्षीरवर दीप क्षीरवर समुद्र, ६ घृतवर द्वीप, ६ धृतवर समुद्र, ७ इक्षुवर द्वीप ७ इक्षुबर समुद्र, ८ नन्दीश्वर द्वीप, ८ नन्दीश्वर ममुद्र, अरुणवर डीप, ९ अरुणवर समुद्र । इस प्रकार स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त एक दूसरको धरे हुये असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। अर्थात् पच्चीस कोटि उद्धारपल्यों के जितने रोम खण्ड हो उतनी ही द्वीप-समुद्रों की संख्या है।
मेरुसे उत्तर दिशाम उत्तर कुरु नामकः उत्तम भोगभूमि है। उसके मध्य में नाना रत्नमय एक जम्यूयक्ष है। जम्यूवृक्षके चारों ओर चार परिवार वृक्ष है। प्रत्येक परिवार वृक्षक भी एक लाख व्यालीस हजार एक सौ पन्द्रह परिवार वृक्ष है। समस्त जम्बू वृक्षोंकी संख्या १४.१२० ई। मृल जम्बूवृक्ष ५०० योजन ऊँचा है। मध्यमें जम्बू वृक्षके होनेसे ही इस द्वीपका नाम जम्बूदीप पड़ा। उत्तर कुरुकी तरह देयकुरुके मध्य में शालमलि वृक्ष है। प्रत्येक वृक्षके ऊपर रत्नमय जिनालय हैं। इसी प्रकार धातकी द्वीप में धातकी वृक्ष और पुष्करवर द्वीपमें पुष्करवर वृक्ष है।
द्वीप और समुद्रोंका विस्तार और रचनाद्विद्विविष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८ ॥ प्रत्येक डीप समुद्र दूने दूने विस्तारवाल, एक दुसरेको बरे हुचें तथा चूड़ी के आकारबाले (गोल) है।
जम्बू द्वीपका विस्तार एक लाख योजन, लवण समुद्रका दो लाख योजन, धातकी द्वीपका चार लाख योजन, कालोद समुद्रका आठ लाख योजन, पुष्करवर द्वीपका सोलह लास्त्र योजन, पुष्करवर समुद्रका बत्तीस लाख योजन विस्तार है. । इसी क्रम स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त द्वीप और समुद्रोंका विस्तार दूना है । जिस प्रकार घातको द्वीपका विस्तार उ.म्यूड़ीय और लवण समुद्र के विस्तारसे एक योजन अधिक है उसी प्रकार असंख्यात समुद्रोंके विस्तारसे स्वयंभूरमण समुद्रका विस्तार एक लाख योजन अधिक है । पहिले पहिल के द्रोप समुद्र आगे आगे के द्वीप समुद्रोंको घर हुये हैं । अर्थात् जम्बूद्वीपको लवण समुद्र, लषण समुद्रका धातकी द्वीप, धातकी द्वीपको कालोद समुद्र परे हुये है । यही क्रम आगे भी है ।
ये डीप समुद्र चूड़ोंक समान गोलाकार है । त्रिकोण, चतुष्कोण या अन्य प्राकार बाल नहीं है।