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तृतीय अध्याय नरको आयुका वर्णन -
सेकसि मदशदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सच्चानां परा स्थितिः ॥ ६ ॥
उन नरकों से नारकी जीवोंकी उत्कृष्ट आयु क्रमसे एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दश सागर, सुबह सागर, बाईस सागर और तेतीस लागर है।
प्रथम नरक के प्रथम पटल में जघन्य आयु १० हजार वर्ष है। प्रथम पदलमें जो आयु है वहीं द्वितीय पटल में जघन्य आयु है। यही क्रम सातों नरकोंमें है । पटलोंमें उत्कृष्ट स्थिति इस प्रकार है ।
नरक
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॥ ९ देव १ वर्ष 189 | | सागर सागर सागर सागर सागर सागर सागर यागर सागर सागर सागर
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पटल मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
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1 ५९ सागर सागर सागर | सागर सागर सागर सागर सागर सागर
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इन नरकों में मद्यपायी, मांसभक्षी, यज्ञमें बलि देनेवाले, असत्यवादी, परद्रव्यका हरण करनेवाले, परस्त्री लम्पटी, ती लोभी, रात्रिमें भोजन करनेवाले, स्त्री, बालक, वृद्ध और ऋषिके साथ विश्वासघात करनेवाले, जिनधर्मनिन्दक, रौद्रध्यान करनेवाले तथा इसी प्रकारके अन्य पाप कर्म करनेवाले जीव पैदा होते हैं ।
उत्पत्ति के समय इन जीवोंके ऊपर की ओर पैर और मस्तक नीचेको भोर रहता है। नारकी जीवों को क्षुधा तृपा आदिकी तीव्र वेदना आयु पर्यन्त सहन करनी पड़ती है । क्षण भर के लिये भी सुख नहीं मिलता है ।
असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप ( रेंगने वाले ) द्वितीय नरक तक, पक्षी तृतीय नरक तक, सर्प चतुर्थनरक तक, सिंह पाँचवें नरक तक, स्त्री छठवें नरक तक और मत्स्य सातवें नरक तक जाते हैं ।
यदि कोई प्रथम नरकमें लगातार जावे तो आठ बार जा सकता है । अर्थात् कोई ata प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ, फिर यहाँ से निकल कर मनुष्य या विर्य हुआ, पुनः प्रथम नरक में उत्पन्न हुआ। इस प्रकार वह जीव प्रथम नरक में ही जाता रहे तो आठ वार तक जा सकता है। इसी प्रकार द्वितीय नरक में सात बार, तृतीय नरक में छह चार, चौथे नरक में पाँच बार, पाँचवें नरक में चार बार, छठवें नरक में तीन बार और सातवें नरकमें दो बार तक लगातार उत्पन्न हो सकता है ।