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द्वितीय अध्याय
आदयिक भायके भेदपतिकपायलिङ्गमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुःश्यकपड्भेदाः ॥ ६।।
धार गति, चार कपाय, तीन वेद, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिद्धत्य, आर लेश्या ये इकोस औदायिक भाव हैं।
गतिनाम कर्म के उदयस उन उन गतियों के भावोंको प्राप्त हाना गति है । कपायोका उदय औदायेक है । वेदोंके उदयसे वेद औदयिक हाते हैं । मिथ्या व कमके उदयस मिथ्यात्व आदयिक है।
मानावरण कर्म के उदयम पदार्थका ज्ञान नहीं होना अज्ञान है।
मिश्र भावों में जो अन्जान है उसका तात्पर्य मिथ्याजानते हैं और यहां अज्ञानका अर्थ ज्ञानका अभाव है।
सभी कर्मों के उदयकी अपेक्षा असिद्ध भाव है। कपायक उदय रंगी हुई मन बचन कायकी प्रवृत्ति का लेश्या कहते हैं ।
.इयाक दव्य श्रार भाचक पसे दो भेद हैं। यहाँ साचलेश्याकाठी ग्रहण क्रिया गया है। योगसे मिश्रित कपात्यकी प्रवृत्तिको श्या कहते हैं। कृष्ण, नील कापात, पील, मार्गदर्शार अस्वल स्वाविधिका निवास है।
आमके फल खाने के लिए छह पुरुषोंकि छह प्रकारक. भात्र होते हैं। एक व्यक्ति आम खानकः लिए पेड़को जड़से उखाड़ना चाहता है। सराइका पीढस काटना चाहता है। तीसरा डालियां काटना चाहता है। चौथा फलोंके गुच्छे तोड़ लेना चाहता है । पाचवाँ केवल पके फल तोड़नेकी चान सोचता है। और छठयों नीचे गिर हुए फलोंको ही खाकर परम तृप्त हो जाता है । इसी प्रकारले मात्र कृष्ण आदि श्यायों में होते हैं।
प्रश्न-आगममें उपशान्तकपाय, क्षीणकपाच और सयोगवलीक शक्लश्या बताई गई है लेकिन जन उनके कषायका उदय नहीं है तब लेश्या कैसे संभव है ?
उत्तर-'उक्त गुणस्थानों में जो गधारा पहिले पायस अनुरजत थी यही इस समय बह रही है, यद्यपि उसका कपाशंश निकल गया है। इस प्रकार के भूतपूर्वप्रज्ञापन नयकी अपेक्षा वहाँ लेश्याका सद्भाव है। अयोगबलीके न प्रकारका योग भी नहीं है इसलिए ये पूर्णतः लेग्यारहित होते हैं।
पारिणामिक साय
जीवभव्याभव्यानि च ॥ ७ ॥ जीवस्व, भव्यत्व और अभव्यत्य ये तीन पारिणामिक भाव है । जीवत्व अर्थात् चेतनत्य । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और प्रम्यचारित्ररूप पर्याय प्रकट हानेकी बोग्यताको भव्यत्य कहते हैं तथा अयोग्यताको अभव्यत्य ।
सूत्र में दिए गए 'च' शब्दसं अस्तित्त्र, वस्तुत्म, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशवत्व, मूतत्व, अमूर्तस्त्र, चेतनत्व, अचेतनत्व आदि भावका ग्रहण किया गया है, अर्थात् ये भी पारिगामिक भाव है।
ये भाव अन्य द्रव्यों में भी पाये जाते हैं. इसलिये जीव असाधारण भाव न होने से सूत्रमें इन भावोंका नहीं कहा है।
प्रश्न पुल द्रव्यमं चतमत्व और जीय द्रव्यमें अचेतनत्य कैसे संभव है ? उत्तर-जैस दीपक्रकी शिखा रूपसे परिणत तेल दीपककी शिखा हो जाता है उसी