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________________ ३५४ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार १ उत्पादपूर्व-इसमें वस्तुके उत्पाद, व्यय और प्रौव्यका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या एक करोड चार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज २ अमायणीपूर्व-इसमें अंगोंके प्रधानभूत अर्धाका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या छयानवे लाख है।" ३ बीर्यानुप्रघादपूर्व-इसमें बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती, इन्द्र, तीर्थकर आदिके बल का वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या सत्तर लाख है। ४ अस्तिनास्तिपवादपूर्व-इसमें जीव आदि वस्तुओंके अस्तित्व और नास्तित्वका वर्णन है। इसके पदों की संख्या साठ लाख है । ५ ज्ञानप्रयादपूर्व-इसमें आठ ज्ञान, उनकी उत्पत्ति के कारण और ज्ञानों के स्वामीका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या एक कम एक करोड़ है। ६ सत्यप्रवादपूर्व-इसमें वर्ण, स्थान, दो इन्द्रिय आदि प्राणी और पचनगुसिके संस्कारका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या एक करोड़ और छह है। ७ आत्मवादपूर्व-इसमें आत्माके स्वरूप का वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या : छब्बीस करोड़ है। ८ कर्मप्रवादपूर्व-इसमें कौके बन्ध, उदय, उपशम और उदीरणाका वर्णन है। इसके पदोकी संख्या एक करोड़ अस्सी लाख है। प्रत्याख्यानपूर्व–इसमें द्रव्य और पर्यायरूप प्रत्याख्यानका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या चौरासी लाख है। १. विद्यानुप्रबाद- इसमें पाँच सौ महाविद्याओं, सात सौ क्षुद्रविद्याओं और अष्वंगमहानिमित्तोंका वर्णन है । इसके पदों की संख्या एक करोड़ दश लाख है। १५ कल्याणपूर्व–इसमें तीर्थकर, चक्रवती, बलभद्र, वासुदेव, इन्द्र आदिके पुण्यत्र वर्णन है। इसके पदों की संख्या छब्बीस करोड़ है। १२ प्राणावायपूर्व—इसमें अष्टांग वैद्यविद्या, गारुढविद्या और मन्त्र-तन्त्र आदिका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या तेरह करोड़ है। १३ क्रियाविशालपूर्व–इसमें छन्द, अलंकार और व्याकरणफी कलाका वर्णन है।। इसके पदोंकी संख्या नौ करोड़ है। १४ लोकबिन्दुसार-इसमें निर्वाणके सुखका वर्णन है। इसके पदोकी संख्या साड़े बारह करोड़ है। प्रथमपूर्वमें दश, द्वितीयमें चौदह, तृतीयमें आठ, चौथमें अठारह, पाँचर्येमें वारद, छठवें में बारह, सात में सोलह, आठवें में श्रीस, नौमें तीस, दशा में पन्द्रह, म्यारहवेमें दश, वारहवें में दश, तेरहवेंमें दश और चौदहवें पूर्वमें दश वस्तुएँ है। सन्न वस्तुओं की संख्या एक सौ पश्चानबे है। एक-एक वस्तुमें बीस-बीस प्राभूत होते हैं। सब प्राभृतोंको संख्या तीन हजार नौ सौ है। ५ चूलिकाके पाँच भेद हैं-१ जलगता चूलिका, २ स्थलगता चूलिका, ३ मायागमा चूलिका, ४ आकाशगता चूलिका और ५ रूपगता चूलिका । १ जलगता चूलिका-इसमें जलको रोकने, जलको वर्षाने आदिक मन्त्र-सन्त्रोक्छ । वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ है। २ स्थलगता चूलिका-इसमें थोड़े ही समयमें अनेक योजन गमन करनेके मन्त्र-सन्यो। का वर्णन है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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