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________________ २०] प्रथम अध्याय ३५३ २ सूत्रकृताङ्ग --- इसमें ज्ञान, विनय, छेदोपस्थापना आदि क्रियाओंका वर्णन है । इसके पदों की संख्या छत्तीस हजार है । ३ स्थानास - एक दो तीन आदि एकाधिक स्थानोंमें षद्रव्य आदिका निरूपण है। इसके पर्दों की संख्या बयालीस हजार है। ४ समवायाङ्ग -- इसमें धर्मं, अधर्म, लोकाकाश, एकजीव असंख्यात प्रदेशी हैं। सातवें नरकका मध्यबिल जम्बूद्वीप, सर्वार्थसिद्धिका विमान और नन्दीश्वर द्वीपकी वापी इन सबका एकलाख योजन प्रमाण है, इत्यादि वर्णन है। इसके पदों की संख्या चौसठ हजार है। ५ व्याख्याप्राप्ति -- इसमें जीव हैं या नहीं इत्यादि प्रकारके गणधर के द्वारा किये गये साठ हजार प्रश्नों का वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या दो लाख अट्ठाईस हजार है । ६ शालकथा- इसमें तीर्थकरों और गणधरोंकी कथाओंका वर्णन है । इसके vaist संख्या पाँच लाख पचास हजार है । ७ उपासकाध्ययन -- इसमें श्रावकों के आचारका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या ग्यारह लाख सत्तर हजार है । - अन्तःकृतदश – प्रत्येक तीर्थकर के समय में दश दश मुनि होते हैं जो उपसर्गको सहकर मोक्ष पाते हैं। उन मुनियोंकी कथाओंका इसमें वर्णन है । इसके पदकी महाराज "संख्या तेइस लाख अ दर्शक ९ अनुपपादिकदश - प्रत्येक तीर्थंकर के समय दश दश मुनि होते हैं, जो उपसर्गको सहकर पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं । उन मुनियोंकी कथाओंका इसमें वर्णन है । इसके पर्दोंकी संख्या वानवे लाख चवालीस हजार है। १० प्रश्नव्याकरण इसमें प्रश्न के अनुसार नष्ट, मुष्टिगत आदिका उत्तर है । इसके पदों की संख्या ते नवे लाख सोलह हजार है । ११ विपाकसूत्र -- इसमें कमोंके उदय, उदीरणा और सत्ताका वर्णन है । इसके पदों की संख्या एक कराड़ चौरासी लाख है । १२ दृष्टिवाद नामक बारहव अङ्गके पाँच मे हूँ - १ परिकर्म, २ सूत्र, ३ प्रथमानुयोग, ४ पूर्वगत और ५ चूलिका । इनमें परिकर्मके पाँच भेद हैं- १ चन्द्रप्राप्ति, २ सूर्यप्रज्ञप्ति, २ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति | ५ चन्द्र प्रज्ञप्ति इसमें चन्द्रमा के आयु. गति, चंभव आदिका वर्णन हैं । इसके पदों की संख्या छत्तीस लाख पाँच हजार है । २ सूर्यप्रज्ञप्ति - इसमें सूर्यकी आयु, गति, THE आदिका वर्णन है। इसके पदों की संख्या पाँच लाख तीन हजार है । ३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - इसमें जम्बूद्वीपका वर्णन है। इसके पर्दोंकी संख्या तीन लाख पच्चीस हजार है। ४ द्वीपसागरभज्ञप्ति - इसमें सभी द्वीप और सागरोंका वर्णन है । इसके पदोंकी संख्या बावन लाख छत्तीस हजार है । ५ व्याख्यानमि- इसमें छह द्रव्योंका वर्णन है । इसके पदों की संख्या चौरासी लाख छत्तीस हजार है। २ सूत्र - इसमें जीवके कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदिकी सिद्धि तथा भूत चैतन्यवादका खण्डन है । इसके पर्दोंकी संख्या अठासी लाख है । ३ प्रथमानुयोग- उसमें तिरसठ शलाका महापुरुषोंका वर्णन है। इसके पदोंकी संख्या पाँच हजार है। ४ पूर्वग के उत्पाद पूर्व आदि चौदह भेद हैं । ४५
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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