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________________ ३४. तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [१८ सामान्य से मिथ्यादृष्टियों में नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल हैं। एक जीवकी अपेक्षा कालके तीन मंद होते हैं। किसी जीत्रका काल अनादि और अनन्त है, किसीका अनादि और सान्त है । तथा किसीका सादि और सान्त हैं। सादि और सान्तकाल जघन्य अन्तमुहूत है और उत्कृष्ठ कुछ कम अधपुद्गलपरिवर्तनकाल है। सासादन सम्यष्ट्रियोंम सब जीवोंकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट मार्गदर्शक :- कुपचावयाभावहासामा म्हागजीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल ६ अाचली.हे। असंख्यात समयकी एक आवली होती है। संख्यात आलियोंके समूहको उच्छ्वास कहते हैं। सात उच्छ्वासका एक स्तोक होता है। सात स्तोकका एक लब होता है । ३८ लवकी एक नाली होती है। दो मालीका एक मुहूर्त होता है अर्थात् ३७७३ उच्छ्वासांक समूहको मुहूर्त कहते हैं। एक समय अधिक आवलीसे अधिक और एक समय कम मुहूर्त के समयको अन्तर्मुहूर्न कहते हैं । इसके असंख्यात भेद हैं। सम्बग्मिथ्या दृष्टियों में नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग हैं। एक जीलकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही है। असंग्रतसम्यग्दृष्टिक नाना जीरोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ अधिक तेतीस सागर है । क्योंकि कोई 'पूर्वकादि आयुवाला मनुष्य आठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्त के बाद सम्यकत्वको प्राप्त कर विशेष तपके द्वारा सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न हो सकता है। वहीं जीच सर्वार्थसिद्धिसे मनुष्य भवमें आकर आठ घपके बाद संयम ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है । इस प्रकार कुछ अधिक तेतीस सागर काल हो जाना है। देशसंयतके नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीबकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्नर्मुहूर्त और उस्कृष्टकाल कुछ कम एक पूर्वकोटि है।। प्रमत्त और अप्रमत्त जीवोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय है । क्योंकि कोई प्रमसगुणस्थानवी जीव अपनी आयुके एक समय छाप रहनेपर अप्रमत्तगुष्यस्थानको प्राप्तकर मरण करता है। इसी प्रकार अप्रमत्तगुणस्थामवर्ती जीव अपनी आयुके एक समय शेष रहनेपर प्रमत्तगुणस्थानको प्राप्तकर मृत्युको प्राप्त होता है। इस प्रकार दोनों गुणस्थानों में एक जीवका जघन्यकाल एक समय है। और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। चारों जपशमकोंक नाना और एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। क्योंकि चारों उपशमक एक साथ ५४ तक हो सकते हैं और यह सम्भव है कि उपशमश्रेणी में प्रवेश करते ही सबका एक साथ मरण हो जाय । इसलिये जघन्यसे एक समय काल बन सकता है। प्रश्न इस प्रकारसे मिश्वादृष्टिका काल भी एक समय क्यों नहीं होता ? उत्तर-जिस जीवने मिथ्यात्वको प्राप्त कर लिया है उसका अन्तमुहूर्त के बीच नरण नहीं हो सकता । कहा भी है कि सम्यग्दर्शनसे मिथ्यात्वको प्राप्त कर लेनेपर अनन्तानुबन्धी कपायों का एक प्रावली पर्यन्त पाक नहीं होता है और अन्तर्मुहून के मध्यमें मरण भी नहीं होता है। सम्यगमिथ्याष्ट्रि जीव मरणसमयमें उस गुणस्थानको छोड़ देता है अतः उसका भी काल एक समय नहीं है। असंयत और संयतासंयत जीव भी अन्तर्मुहूर्तके भीतर मरण नहीं करता अतः इसका भी काल एक समय नहीं है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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