SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८] प्रथम अध्याय -सयोगकेवली तीनों वातवलयोंके नीचे ही श्रात्मप्रदेशोंसे लोकको व्याप्त करता है । लोक पूरण अवस्थामें तीनों वातवलयोंको भी व्याप्त करता है । अतः सर्वलोक भी क्षेत्र होता है। स्पर्शन भी सामान्य और विशेषके भेदसे दो प्रकार का है । सामान्यसे मिथ्याष्टियों के द्वारा सर्वलोक स्पृष्ट है। असंख्यात करोड योजन प्रमाण आकाशके प्रश्शोंको एक राज़ कहते हैं। और तीन सौ तेतालीस राजू प्रमाण लोक होता है। लोक स्वस्थानबिहार, परस्थान विहार और मारणान्तिक उपपाद प्राणियोंके द्वारा किया जाता है। स्वस्थानविहार की अपेक्षा सासादन सम्यग्दृष्टियों के द्वारा लोकका असंख्यातयों भाग स्पर्श किया जाता है। परस्थानविहार की अपेक्षा सासादनदेयों द्वारा तृतीयनरच. पर्यन्त बिहार होनेसे दो राजू क्षेत्र स्पृष्ट है । अच्युत स्वर्गके उपरिभाग पर्यन्त विहार होनेसे ६ राजू क्षेत्र स्पष्ट है । इस प्रकार लोकके ८, १२ या कुछ कम १४ भाग स्पृष्ट हैं। प्रश्न- द्वादश भाग किस प्रकार स्पृष्ट होते हैं ? उत्तर-सप्तम नरकमें जिसने सासादन आदि गुण स्थानोंको छोड़ दिया है वही जीव मारणान्तिक समुद्धात करता है इस नियमसे पाट नरकसे मध्यलोक पर्यन्त सासादनसम्यग्दृष्टि जीय मारणान्तिकको करता है । और मध्यलोकसे लोकके अग्रभागपर्यन्त बादरपृथ्वी, अप और वनस्पति कायमें उत्पन्न होता है। अतः ७ राजू क्षेत्र ग्रह हुआ। इस प्रकार ५२ राजू क्षेत्र हो जाता है। यह नियम हैं कि सासादनसम्यम्दष्टि जीव वायुकामश्चर्यदलकाचिकामार्थ और सुर्विवूिजाकामियों मेंहासन नहीं होता है । कहा भी है। तेजकायिक, वाचुकायिक, नरक और सर्वसूक्ष्मकायिकको छोड़कर बाकीक स्थानांम सासादन जीव उत्पन्न होता है। प्रश्न देशोन क्षेत्र कैसे होता है ? उत्तर-कुछ प्रदेश सासादन सम्यग्लाष्टिक सर्शन योग्य नहीं होते हैं इसलिये देशान क्षेत्र हो जाता है। आगे भो देशोनता इसी प्रकार समझनी चाहिए। सम्यगमिथ्यानि और असंयतसम्यराष्ट्रियोंक द्वारा लोक का असंख्यातवाँ भाग, लोकके आठ भाग अथवा कुछ कम १४ भाग स्पृष्ट है। प्रश्न-किस प्रकार से? उत्तर-सम्यगमिथ्याष्टि और असंचतसम्यग्दृष्टि दचोंक द्वारा परस्थानविहारकी अपेक्षा आठ राजू स्पृष्ट है। संयतासंय”क द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग, छह भाग अथवा कुछ कम चौदह भाग पृष्ट है। प्रश्न-किस प्रकार से ? ग्वयंभूर-णमें स्थित संग्रतासंयत तिर्य चोंक द्वारा मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा छह राजू स्पृष्ट है। प्रमत्तसंयतसे अयोनकवली पयन्त गुणस्थानवी जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान ही है। क्योंकि प्रमत्तसंयत्त आदिका क्षेत्र नियत है श्रीर भवान्तर में उत्पादस्थान भी नियत है। अतः चतुष्कोण रज्जूके प्रदेशोंम निधास न हानसे लोक असंख्यातयों भाग स्पशन है। सयोगकेवलीके भी क्षेत्र के समान ही लोकका असंख्यानौँ भाग, लोकके असंख्यात भाग अथवा सर्वलोक स्यर्शन है। काल-सामान्य और विशेषके भेदसे काल दो प्रकारका है।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy