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प्रत्येक गुणस्थान में २९९ उपशमक होते हैं ।
प्रश्न- १६ आदि आठ समयोंकी संख्याका जोड़ ३०४ होता है फिर २९४ कैसे बतलाया ?
उत्तर - श्राठ समयों में श्रपशमिक निरन्तर होते हैं किन्तु पूर्ण संख्या में ५ कम होते दवारों भुवनकी संख्या ।
अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय क्षीणकषाय और अयोगकेवली इन गुणस्थानों में प्रत्येकके आठ आठ समय होते हैं। और प्रत्येक समय की संख्या उपशमकसे द्विगुणी है। कहा भी है-
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स्वार्थवृत्ति हिन्दी - सार
३२, ४८, ६०, ७२,८४, ९६, १०८, १०८ क्रमशः प्रथम आदि समयोंकी संख्या है। प्रत्येक गुणस्थान में सम्पूर्ण संख्या ५९८ है ।
प्रश्न- इन गुणस्थानोंमें भी ६०८ संख्या होती है, ५६८ किस प्रकार संभव है ? उत्तर – जिस प्रकार उपशमकों की संख्या में ५ कम हो जाते हैं उसी प्रकार क्षपकों की संख्या में भी द्विगुणी हानि होने से १० कम हो जाते हैं । अतः ५९८ ही संख्या होती है । इस प्रकार ५ क्षपक गुणस्थानों की समस्त संख्या २९९० है । कहा भी हैं
क्षीण कषायों की संख्या २९९० है ।
सयोगकेवली भी उपशमकों की अपेक्षा द्विगुणित हैं। श्रतः प्रथम समय में १, २, ३ इत्यादि ३२ पर्यन्त उत्कृष्ट संख्या है। इसी प्रकार द्वितीय आदि समय में समझना चाहिए । प्रश्न -- क्षपकों की तरह ही सयोगकेवलियोंकी संख्या है । अतः सयोगकेवलीका पृथक् वर्णन क्यों किया ?
उत्तर - आठ समयवर्ती समस्त केवलियोंकी संख्या ८९८५०२ है । अतः समुदित संख्याको अपेक्षा भपकों से विशेषता होने के कारण सयोगकेवलीका वर्णन पृथक किया है। कहा भी है
'जिनों की संख्या ८ लाख ९८ हजार ५०२ है ।'
प्रमत्तसंयत से अयोग केबली पर्यन्त एक समयवर्ती समस्त जीवोंकी उत्कृष्ट संख्या ८९९९९९९७ हैं । इस प्रकार सामान्य संख्याका वर्णन हुआ।
क्षेत्रका वर्णन सामान्य और विशेषकी अपेक्षा किया गया है। सामान्यसे मिध्यादृष्टियों का क्षेत्र सर्वलोक है । सासादन सम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय पर्यन्त और अयोगकेवलीका क्षेत्र लोककें असंख्यात भाग है । सयोगकेवलीका क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग अथवा लोकके असंख्यात भाग या सर्वलोक है ।
प्रश्न-सयोगकेवलीका लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र फँसे है ?
उत्तर - दण्ड और कपाटकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र होता है। इसका विवरण इस प्रकार है-यदि समुद्धात करने वाला कायोत्सर्गसे स्थित है तो दण्डसमुद्घातको बारह अङ्गुल प्रमाण समवृत्त ( गोलाकार ) करेगा अथवा मूल शरीरप्रमाण समवृत्त करेगा । और यदि बैठा हुआ है तो प्रथम समय में शरीर से त्रिगुण बाहुल्य अथवा तीन चातवलय कम लोक प्रभाण करेगा । कपाट समुद्धातको यदि पूर्वाभिमुख होकर करेगा तो दक्षिण-उत्तर की ओर एक धनुष प्रमाण विस्तार होगा । और उत्तराभिमुख होकर करेगा तो पूर्व-पश्चिम की और द्वितीय समय में आत्मसर्पण करेगा इसका विशेष व्याख्यान संस्कृत मद्दापुराणपञ्जिकामें है। प्रतरकी अपेक्षां लोककें असंख्यात भाग प्रमाण क्षेत्र होता है। प्रतर अवस्था में