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________________ [१८ प्रत्येक गुणस्थान में २९९ उपशमक होते हैं । प्रश्न- १६ आदि आठ समयोंकी संख्याका जोड़ ३०४ होता है फिर २९४ कैसे बतलाया ? उत्तर - श्राठ समयों में श्रपशमिक निरन्तर होते हैं किन्तु पूर्ण संख्या में ५ कम होते दवारों भुवनकी संख्या । अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय क्षीणकषाय और अयोगकेवली इन गुणस्थानों में प्रत्येकके आठ आठ समय होते हैं। और प्रत्येक समय की संख्या उपशमकसे द्विगुणी है। कहा भी है- ३४० स्वार्थवृत्ति हिन्दी - सार ३२, ४८, ६०, ७२,८४, ९६, १०८, १०८ क्रमशः प्रथम आदि समयोंकी संख्या है। प्रत्येक गुणस्थान में सम्पूर्ण संख्या ५९८ है । प्रश्न- इन गुणस्थानोंमें भी ६०८ संख्या होती है, ५६८ किस प्रकार संभव है ? उत्तर – जिस प्रकार उपशमकों की संख्या में ५ कम हो जाते हैं उसी प्रकार क्षपकों की संख्या में भी द्विगुणी हानि होने से १० कम हो जाते हैं । अतः ५९८ ही संख्या होती है । इस प्रकार ५ क्षपक गुणस्थानों की समस्त संख्या २९९० है । कहा भी हैं क्षीण कषायों की संख्या २९९० है । सयोगकेवली भी उपशमकों की अपेक्षा द्विगुणित हैं। श्रतः प्रथम समय में १, २, ३ इत्यादि ३२ पर्यन्त उत्कृष्ट संख्या है। इसी प्रकार द्वितीय आदि समय में समझना चाहिए । प्रश्न -- क्षपकों की तरह ही सयोगकेवलियोंकी संख्या है । अतः सयोगकेवलीका पृथक् वर्णन क्यों किया ? उत्तर - आठ समयवर्ती समस्त केवलियोंकी संख्या ८९८५०२ है । अतः समुदित संख्याको अपेक्षा भपकों से विशेषता होने के कारण सयोगकेवलीका वर्णन पृथक किया है। कहा भी है 'जिनों की संख्या ८ लाख ९८ हजार ५०२ है ।' प्रमत्तसंयत से अयोग केबली पर्यन्त एक समयवर्ती समस्त जीवोंकी उत्कृष्ट संख्या ८९९९९९९७ हैं । इस प्रकार सामान्य संख्याका वर्णन हुआ। क्षेत्रका वर्णन सामान्य और विशेषकी अपेक्षा किया गया है। सामान्यसे मिध्यादृष्टियों का क्षेत्र सर्वलोक है । सासादन सम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय पर्यन्त और अयोगकेवलीका क्षेत्र लोककें असंख्यात भाग है । सयोगकेवलीका क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग अथवा लोकके असंख्यात भाग या सर्वलोक है । प्रश्न-सयोगकेवलीका लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र फँसे है ? उत्तर - दण्ड और कपाटकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्र होता है। इसका विवरण इस प्रकार है-यदि समुद्धात करने वाला कायोत्सर्गसे स्थित है तो दण्डसमुद्घातको बारह अङ्गुल प्रमाण समवृत्त ( गोलाकार ) करेगा अथवा मूल शरीरप्रमाण समवृत्त करेगा । और यदि बैठा हुआ है तो प्रथम समय में शरीर से त्रिगुण बाहुल्य अथवा तीन चातवलय कम लोक प्रभाण करेगा । कपाट समुद्धातको यदि पूर्वाभिमुख होकर करेगा तो दक्षिण-उत्तर की ओर एक धनुष प्रमाण विस्तार होगा । और उत्तराभिमुख होकर करेगा तो पूर्व-पश्चिम की और द्वितीय समय में आत्मसर्पण करेगा इसका विशेष व्याख्यान संस्कृत मद्दापुराणपञ्जिकामें है। प्रतरकी अपेक्षां लोककें असंख्यात भाग प्रमाण क्षेत्र होता है। प्रतर अवस्था में
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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