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प्रथम अध्याय
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दर्शनकी अपेक्षा चक्षु और अचतुदर्शन में आदिके १२ गुणस्थान होते हैं । अवधिदर्शनमें असंयतसम्यग्दृष्टि आदि ९ गुणस्थान होते हैं । केवलदर्शन में अन्तके दो गुणस्थान होते हैं ।
लेrयाकी अपेक्षा कृष्ण, नील और कापोत लेश्या में मिध्यादृष्टि आदि ४ गुणस्थान होते है । पीत और पद्म लेश्या में आदिके ७ गुणस्थान होते हैं। शुक्ल लेश्या में आदि १३ गुणस्थान होते है । १४ वाँ गुणस्थान लेश्यारहित हैं ।
भव्यत्वकी अपेक्षा भव्योंके १४ ही गुणस्थान होते हैं। अभव्यके पहिला गुणस्थान ही होता है ।
सम्यक्त्वकी अपेक्षा क्षायिकसम्यक्त्व में असंयतसम्यग्दृष्टि यदि ११ गुणस्थान होते हैं । वेदकसम्यक्त्वमें असंयतसम्यग्दृष्टि आदि ४ गुणस्थान होते हैं । औपशमिक सम्यक्ज्ञादशीकयतसज्जावधि अदखान जो हैंासादनसम्यग्दृष्टि के एक सासादन गुणस्थान ही होता है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है । मिथ्यादृष्टि मिध्यादृष्टि गुणस्थान ही होता है ।
संज्ञाकी अपेक्षा संज्ञीके आदिसे १२ गुणस्थान होते हैं। असंज्ञीके प्रथम गुणस्थान ही होता है । अन्त के दो गुणस्थानों में संक्षी और असंज्ञी व्यवहार नहीं होता ।
आहारकी अपेक्षा आहारकके आदिसे १३ गुणस्थान होते हैं । अनाहारकके विग्रहगति में मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि ये तीन गुणस्थान होते है । समुद्रात करनेवाले सयोगकेवली और अयोगकेवली अनाहारक होते हैं । सिद्ध गुणस्थान रहित होते हैं ।
संख्याप्ररूपणाका वर्णन भी सामान्य और विशेषकी अपेक्षा किया गया है । सामान्य से मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त है। सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिध्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और देशसंयत्त पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। यह इस प्रकार है-द्वितीय गुणस्थान में वाचन करोड़ ५२०००००००, तृतीय में एक सो चार करोड़ १०४०००००००,
चतुर्थ में सात सौ करोड़ ७०००००००००, और पमगुणस्थान में तेरह करोड़ १३००००००० संख्या है। कहा भी है-- देशविरत में तेरह करोड़, सासादन में बावन करोड़, मिश्र में एक सौ चार करोड़ और असंयत में सात सौ करोड़ जीवों की संख्या है।
संयत कोटिपृथक्त्व प्रमाण हैं ।
प्रश्न- पृथक्त्व किसे कहते हैं ?
उत्तर - तोनसे अधिक और नौसे कम संख्याको पृथक्त्व कहते हैं। प्रमत्तसंयत जीवों की संख्या ५९३९८२०६ है ।
अप्रमत्त संयत जीव संख्यात हैं अर्थात् २९६४९१०३ हैं ।
पूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय और उपशान्तकपाय ये चार उपशमक हैं इनमें प्रत्येक गुणस्थानके आठ २ समय होते हैं और आठ समय में क्रमशः १६,२४,३०,३६, ४२,४८,५४,५४ सामान्यसे उत्कृष्ट संख्या है । विशेषसे प्रथम समय में १,२,३ इत्यादि १६ तक उत्कृष्ट संख्या होती है। इसी प्रकार द्वितीय आदि समयों में समझना चाहिए। कहा भी है — १६,२४,३०,३६,४२,४८,५४,५४ संख्या प्रमाण उपशमक होते हैं ।