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________________ ३३८ तत्त्वार्थवृत्ति हिन्दी-सार [१५८ ७ अप्रमत्तसंयत ८ अपूर्घकरण ९ अनिवृत्तिकरण १० सूक्ष्मसाम्परान्य ११ उपशान्तकषाय १२ क्षीणकषाय १३ सयोगकेवली १४ अयोगकेवली। इन चौदह गुणस्थानों में जीवोंका वर्णन चौदह मार्गणाओंकी अपेक्षा किया गया है। मार्गणाएँ ये हैं-रगति २ इन्द्रिय ३ काय ४ योग ५ वेधशिवसका ७ बाहामंशा सुविधासाभरलेशमा महशअव्यत्व १२ सम्यक्त्व १३ संज्ञा १४ आहार। सामान्यसे जीवमै मिथ्याष्टिसे अयोगकेवलीपर्यन्त सभी गुणस्थान पाये जाते हैं। विशेषसे गतिकी अपेक्षा नरकगति में सातों ही नरकों में मिध्यादृष्टि आदि ४ गुणस्थान होते हैं। तिर्यगति में देशसंयत सहित ५ गुणस्थान है। मनुष्यगतिमें १४ ही गुणस्थान होते हैं। देवगतिमें आदिके ४ गुणस्थान होते हैं। ___ इन्द्रियकी अपेक्षा. एकेन्द्रियसे चतुरिन्द्रियपर्यन्त प्रथम गुणस्थान ही होता है। पञ्चेन्द्रिय के १४ ही गुणस्थान होते हैं। कायकी अपेक्षा पृथिवी आदि स्थावरकायमें प्रथम गुणस्थान होता है। त्रसकायमें १४ ही होते हैं। योगकी अपेक्षा तीनों योगों में सयोगकेयलीपर्यन्त गुणस्थान होते हैं। अयोग अवस्थामें केवल अयोगकेवली गुणस्थान होता है। वेदकी अपेक्षा तीनों वेदोंमें अनिवृत्तिवादरपर्यन्त ५ गुणस्थान होते हैं। वेदरहित जीवोंके अनिवृत्तिनादरसे अयोगकेवली पर्यन्त ६ गुणस्थान होते हैं। अनिवृत्तिबावर गुणस्थानके ६ भाग होते हैं। उनमेंसे प्रथम ३ भागों में वेदकी निवृत्ति न होनेसे चे सवेद हैं और अन्तके ३ भाग अवेद हैं। अतः अनिवृत्तिकरण सवेद और अवेद दोनों प्रकारका है। कषायकी अपेक्षा क्रोध, मान और मायामें अनिवृत्तिबादर पर्यन्त ५ गुणस्थान होते हैं । लोभ कषायमें मिथ्यादृष्टि आदि १० गुणस्थान होते हैं। अकषाय अवस्था में उपशान्त कषायसे अयोगफेवली पर्यन्त ४ गुणस्थान होते हैं। झानकी अपेक्षा कुमति, कुश्रुत और कुअवधि में प्रथम और द्वितीय गुणस्थान होते है। सम्यग्मिध्याष्टिके ज्ञान या अज्ञान नहीं होता किन्तु अज्ञान सहित ज्ञान होता है । कहा भी है-मिश्र में तीन ज्ञान तीन अज्ञानसे मिश्रित होते हैं। इसलिये यहाँपर मिश्र गुणस्थानका वर्णन नहीं किया गया है। मिश्रका वर्णन अज्ञान प्ररूपणामें ही किया गया है क्योंकि सम्यग्मिध्यादृष्टिका ज्ञान यथार्थ वस्तुको नहीं जानता है। मति, श्रत और अवधिज्ञानमें असंयतसम्यग्दृष्टि से क्षीणकषायपर्यन्त ए गुणस्थान होते हैं। मनःपर्ययज्ञानमें प्रमतसंयतसे क्षीणकषायपर्यन्त ७ गुणस्थान होते हैं। केवलज्ञानमें सयोगकेवली और अयोगकेवली ये दो गुणस्थान होते हैं। संयम की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयममें प्रमत्त आदि चार गुणास्थान होते हैं। परिहारविशुद्धिसंयम में प्रमत्त और अप्रमत्त दो गुणस्थान होते हैं । सूरमसाम्पराय संयममें सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान ही होता है । यथाख्यात संयम, उपशान्तकपायसे अयोगकेवलीपर्यन्त ४ गुणस्थान होते हैं । देशसंयममें पञ्चम गुणस्थान ही होता है। असंयत अवस्थामें आदिके ४ गुण-स्थान होते हैं।
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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